आज की जिंदगी वर्चुअल
दीप्ति डांगे पहले समय में कहा जाता था कि पढोगे लिखोगे तो बनो के नवाब खेलोगे कूदोगे तो होंगे खराब। यही सोच आज भी ज्यादातर माता पिता की है। आज भी बच्चो का बाहर खेलना सिर्फ मनोरंजन मात्र या बच्चे के स्वास्थ्यलाभ तक ही सीमित है। जो कुछ सालों बाद कमरे मे कंप्यूटर या मोबाइल तक सीमित हो जाता है। आज बच्चे मोबाइल और कंप्यूटर की दुनिया मे खो जाते है। धीरे धीरे हालात ऐसे हो रहे है कि पूरी दुनिया से हमारा रिश्ता सिर्फ आभासी दुनिया के जरिये ही रह गया है। पहले जहां दोस्त साथ बैठ कर बातें, मस्तिया करते थे अब साथ बैठकर मोबाइल पर खेल खेलते है। एक व़क्त था जब शाम का खाना खाते व़क्त घर के सभी सदस्य दिनभर के अपने अनुभवों को एक-दूसरे से शेयर करते थे। बातें करते थे। हंसी मजाक करते थे। लेकिन आज ये नज़ारा बदल गया है। ज़्यादातर सदस्य अपने-अपने मोबाइल फोन में बिज़ी रहते हैं। बेडरूम में भी टेक्नोलॉजी, रिश्तों पर भारी पड़ रही है। अपने लैपटॉप पर ऑफिस का काम निपटाते पार्टनर के साथ मिलने वाले पर्सनल स्पेस पर भी टेक्नोलॉजी का कब्ज़ा होता जा रहा है।जहाँ त्योहारों पर परिवार और रिश्तेदार मिलकर त्योहार मनाते थे और त्यो