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श्रृंगार बन अकुलाई

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मनकही  बसंत      विनय विक्रम सिंह नयन मलते हैं सुमन, भोर की अँगड़ाई है। पीत वसना है धरा, मुख सलज अरुणाई है।।  गुंजरित मुद प्राण ले, प्रकृति सरसिज हो रही। मुग्धकारी कोकिला, स्वर मधुर शुभ बो रही। मद मलय मदिरा मयी, स्पंदना नव छाई है।। नयन मलते हैं सुमन, भोर की अँगड़ाई है।१। संचरित नव चेतना, नव वधू सा है भुवन।  पवन चंचल डोलता, छू रहा है हर सुमन। अधखिली कलिका भ्रमित, सकुच मन मुसकाई है। नयन मलते हैं सुमन, भोर की अँगड़ाई है।२। स्वप्नवत चहुँ-दिश सजीं, इंद्रधनुषी हो रहीं। कामना हर हर्षिता, अंकुरित तन हो रहीं। छन्दलय की रागिनी, श्रृंगार बन अकुलाई है।  नयन मलते हैं सुमन, भोर की अँगड़ाई है।३। भृंग अविरल डोलते, शीतल समीरण कर रहे। गुन परागित नेह से, कोष हृद मधु भर रहे। पुहुप ने मधुमास की, मोहक छटा छनकाई है।  नयन मलते हैं सुमन, भोर की अँगड़ाई है। पीत वसना है धरा, मुख सलज अरुणाई है।४।

अपना मंजिल-ए-ठिकाना

स्वयं को खोज रहा हूँ? सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  जब भी कभी होता हूँ तन्हा  धीमी हो जाती है धड़कन  कुछ विचार आने लगते है मन में  और मैं निकल पड़ता हूँ  स्वयं को कहीं खोजने.  राह चलते सब्ज -बाग पत्ते  पीछे भागते पेड़ और पक्षी  एक दूसरे में रमे  आदम और हव्वा की तरह  कहीं रहते होंगे प्रेम -द्वीप में  ज़माने से अन्जान  दुनिया से बेखबर  बस चल रहे हैं  हवा संग बह रहे हैं  मैं भी चला जा र हा हूँ  नज़रों को लगाए  हाथों से बँधे  आकुल एक सपना लिए  स्वयं को खोजने कहीं  कभी तो कहीं मिल जाएगा  "उड़ता "अपना मंजिल -ए -ठिकाना. 

आर्थिक तंगी से परेशानी के चलते आत्महत्या का किया प्रयास

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संजय मौर्य   कानपुर | रेलबाजार अंतर्गत मीरपुर कैंट स्थित झोलाछाप दवा खाने में डॉक्टर के पुत्र ने आग लगाकर आत्महत्या का किया प्रयास, आर्थिक तंगी से परेशानी के चलते कई दिनों से पीड़ित था पूरी तरह से धू धू कर शरीर मे आग जलने लगी। क्लीनिक से निकल के आया रोड में क्षेत्रीय लोगों ने आग को बुझाकर मोटरसाइकिल से लेकर अस्पताल पहुँचे हालात नाजुक

झाँसी के ग्रामीण अंचल से भारी संख्या में महापुरुषों कि एकत्रित जयंती समारोह में उपस्थित का संकल्प

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विशेष संवाददाता  झाँसी। हेमंत कुशवाहा समाज के कार्य हेतु ड्यूटी पर पहले अपनी मोटरसाकिल के लिए जमा किए ५००००  खो दिए फिर कुछ दिन पहले सड़क दुर्घटना में दायें पैर में चोट लगने के कारण चढ़ा पलास्टर फिर भी ११ अप्रैल, 2020 के होने वाले मौर्यवंशीय महापुरुषों कि एकत्रित जयंती समारोह के संकल्प में लेश मात्र भी कमी नहीं। साथ ही साथ झाँसी के ग्रामीण छेत्रो से ५०० की संख्या में उपस्थित का व्यक्तिगत संकल्प लिया। इस पर महासभा को अपार गर्व की अनुभूति कराता है। पत्रकारों से वार्ता में अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा उत्तर प्रदेश इकाई के प्रदेश अध्यक्ष नीरज कुशवाहा ने हेमंत कुशवाहा के बारे में जानकारी दी पेशे से फिजिक्स के इंटर स्कूल में टीचर है।

एक पल की झपकी

बदल रहा हालात-ए-देश कहीं सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  छोड़ कर जा ख़ुशी ज़माने के लिए.  नहीं ये समय आँसू बहाने के लिए.  बंद दरवाज़ों में क्या दबा है,  आने दो हवा नज़्में सुनाने के लिए.  चमन के वास्ते बहारें लाया,  कहीं उठा सैलाब तूफां लाने के लिए.  नाचती है लहरें नित्य सागर में,  कुछ करते प्रयास जल सुखाने के लिए.  बदल रहा हालात -ए -देश कहीं,  भार बन मत जी क़र्ज़ चुकाने के लिए.  एक पल की झपकी ले ली "उड़ता ",  आया एक विचार तुझे जगाने के लिए. 

मीलों अकेले चला हूँ "उड़ता "

मुश्किल से ना घबराओ. सुरेंद्र सैनी बवानीवाल   मत रोक मुझे दूर जाना है.  सपने बहुत है उन्हें पाना है.  ख़्वाबों के हार पिरोने दो.  खिलतीं कलियाँ मत रोने दो.  ज़माने की ऊँच - नीच मत दिखलाओ,  छोटी बातों में मुझे मत उलझाओ.  मंज़िल एक ध्येय को पाना है,  मत कतरो पँख,   उन्हें दूर उड़ जाना है.  कदम मिला रौशन कर दो राहें,  थक कर रुक ना जाऊं,  थाम लो बाहें.  ध्रुव गगन बनकर मेरे साथ आओ,  कर फौलाद से इरादे,  मुश्किल से ना घबराओ.  मीलों अकेले चला हूँ "उड़ता " मेरा साथ देने मेरे पास आओ.   

अपने, पराये हो गए "उड़ता ", 

ये कैसे दिन दिखलाये सुरेंद्र सैनी बवानीवाल   गुजर रहा ज़माना -ए -दौर.  एक आए तो दूसरा जाए.  जिसके मन में आग लगी हो,  उसे कैसे सावन भाए.  जीवन में जो कमी बची हो,  मन की प्यास कौन बुझाए.  काली -पिली छटा अँधेरी,  घनघोर घटा सी छाए.  तड़प रहा विरही का मनवा,  कहीं दूर से शौर आए.  क्यों भूल रहे विगत की बातें,  अब कैसे याद दिलाये  धुल गया सिंदूर मांग का,  उसे सावन कैसे भाए.  बीच राह अटकती दूरी,  उसे मंजिल कौन पहुंचाए.  बारिश आई सावन बरसा,  वो दुखियारी नैना -जल बरसाए.  दूरी दिलों के बीच थी,  जो रात -दिन तड़पाए.  अपने, पराये हो गए "उड़ता ",  ये कैसे दिन दिखलाये.