संदेश

लेख लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नारी शिक्षा के बिना समाज अधूरा -नूपुर श्रीवास्तव

चित्र
‘शिक्षा’ स्त्री का अधिकार व ‘इज़्ज़त’ स्त्री का गहना कार्यालय संवाददाता लखनऊ। एडमिरा मिसेस इंडिया आइकोनिक पर्सनालिटी अवार्ड से सम्मानित नूपुर श्रीवास्तव का कहना है की समाज के हर क्षेत्र में औरत का शिक्षित होना बहुत जरूरी है क्योकि ये न सिर्फ औरत का अधिकार है बल्कि उसकी पहचान मजबूत करने का एक जरिया भी है। पेशे से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर तैनात नूपुर ने बताया की वे शिक्षा के क्षेत्र में नारी शिक्षा पर अधिक जोर देना चाहती हैं क्यूंकि नारी हमारे समाज का अभिन्न अंग है जिसके बिना समाज अधूरा है। हालाँकि उन्होंने केंद्र सरकार की तरफ से शिक्षा निति में बदलाव को लेकर असहमति जताई। नूपुर जी ने बताया की बचपन से ही उन्होंने पढ़ाई के साथ साथ नृत्य का प्रभाकर किया और कत्थक में महारत हासिल की। सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का सपना मन में लिए उन्होंने स्कूल के समय से ही अपने सौंदर्य पर धयान देते हुए इसकी तयारी की। हाल ही में उन्होंने कोहिनूर यूपी अचीवमेंट अवार्ड जीता।  स्त्री के पहनावे को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा की आज समाज को अपनी मानसिक स्थिति में बदलाव लाने की जरुरत है। ये

भ्रम की बात...

 -मंजुल भारद्वाज  आज भारत तपती रेत पर  जलती हवाओं के पानी को ढूंढ़ता हुआ  बदहवास है   भारत मन की नहीं  भ्रम की बात को मान  तमाशा बन  तमाशबीन के भ्रम को करतब मान रहा है  मैं अपने भारत में  जीवन की प्यास लिए  एक एक डग  मौत की तरफ़ बढ़ रहा हूँ  मैं लोकतंत्र हूँ  अब लोक रहित  तंत्र में बदल रहा हूँ!

दासता के मखमल में सो गए

मंजुल भारद्वाज  भूमंडलीकरण ने पूरे विश्व को  बंधवा मज़दूर बना डाला  पढ़े लिखों को  सूट बूट वालों के लिए  डैकैतों का गिरोह बना डाला  कहीं चोरी छुपे नहीं  सब खुलेआम है  सब लुट पिट कर  मुस्कुरा रहे हैं  मैं नहीं लुटा का  भजन गा रहे हैं  कहीं कोई अपने आप से  सवाल नहीं पूछता  क़र्ज़ के मालपुए से भरा  मुंह नहीं खुलता  पढाई लिखाई  गुलामी का ज़रिया हो गई  श्रम,ज़मीन,जायदाद,ज़मीर सब चंद लोगों की  सम्पत्ति हो गए  अपना सब बेच  हम विकास ले आये  आज़ादी का दामन छोड़  दासता के मखमल में सो गए !

दुनियां में ऐसी एकलौती नौकरी...

चित्र
अखिलेश मौर्या          महासागरों में जहाज पर काम करना इतना आसान कभी नहीं रहा ना होता है! यहां अपनी अलग दुनियां है ! अटलांटिक महासगार से प्रशांत महासागर ,स्वेज कैनाल से पनामा कैनाल, पर्सियन गल्फ से बंगाल की खाड़ी ,गल्फ ऑफ मैक्सिको से मिसिसिपी रिवर , ब्लैक सी से रेड सी या ब्राजील के घने जंगलों अमेजन  रिवर से होते हुए महीनों समुन्दर की लहरों पर ,भयकंर हवा के झोखो  के बीच ,तेज बारिश ,तूफान को सहते हुए अपने अंतिम डेस्टीनेशन,बिना देरी के  पहुचने के लिए हमेशा प्रत्यनशील रहते हैं! पूरा काम कठिन जिम्मेदारियो सुरक्षा ,और भी बहुत से चीज़ो से भरा रहता है!  समुन्दर की लहरें बिना किसी  पूर्व चेतावनी  कभी भी बदतर हो जाती हैं ,खाना ,पीना ,और सोना भी ना के बराबर हो जाता है! लेकिन हम सब अपने आप को ठहरे हुए तालाब  वाले पानी की तरह स्वयं को शांत रखने की जदोजहद में लगे रहते ! महीनों लंबे यात्रा के दौरान  हम सब  कभी-कभी  अपने आप को खोया  हुए महसूस करते हैं, लेकिन हमें ट्रेंनिग के दौरान बताया गया है यही वह समय है जब अपने आप को और सभी क्रू मेंबर को अधिक मजबूत होने की जरूरत होती है और अपने लक्ष्य से बिना  विचलि

हैवानियत की न कोई जाति न धर्म..

पवन मौर्य  कल महाराष्ट्र के पालघर में धार्मिक संत कल्प वृक्ष गिरी और सुशील गिरी  की हत्या  भीड़ ने पीट पीट कर कर दिया , जो बहुत ही दुखद और निंदनीय है , सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है जिससे सभी अपराधियों पर ठोस कार्यवाही हो । लेकिन मुझे सोचने के लिए मजबूर करता है जब तक हमारी मानसिकता यह रहेगी कि  माबलांचिंग किसका हुआ है यह देख कर हमारी सोच बनेगी तब तक हमारी नैतिकता शून्य है ,  मावलांचिंग या अपराध  हुआ है तो कारवाही होना चाहिए और ऐसे कृत्य का खुल कर विरोध होना चाहिए लेकिन जब हमारी मानसिकता यह खोजने लगे कि आखिर  किसकी हत्या हुआ वह  किस जाति , धर्म या विचारधारा के व्यक्ति का  हुआ  है  जब जाति धर्म  , संप्रदाय देख कर उसके विरोध को तय करना है तो समझ लो हम भी ऐसे हत्या के मूक  समर्थक होते हैं और बढ़ावा के जिम्मेदार होते हैं सुबोध सिंह , अखलाख , पहलू खा , दिलीप सरोज , ब्रजपाल मौर्य ,  उन्नाव , गुना , रोहित बिमुला , तड़वी , या कन्नौज , झांसी  जैसे घटना पर हमारी  आप की मानसिकता क्या थी या उस मुद्दों पर आप का विरोध कितना था ,   आगे ऐसा कृत्य न हो हमने क्या प्रयास किया   , या आप की उस  समय की

चारित्रिक श्रेष्ठता प्रमाणित करने को तैयार हैं??

अजय कुशवाहा  द्वितीय विश्वयुद्ध का समय... जर्मनी के बमवर्षकों का खौफ... लन्दन में दूध की लंबी लाईन... वितरण कर रहे व्यक्ति ने घोषणा की- केवल एक बोतल और है, बाकी के लोग कल आयें। आखिरी दूध की बोतल जिस शख्स के हाथ आई उसके ठीक पीछे एक महिला खड़ी थी जिसकी गोद में छोटा बच्चा था। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं लेकिन अचानक उसने देखा वितरण करने वाला व्यक्ति उसके हाथ में बोतल थमा रहा था। वह चौंकी!! उसके आगे खड़ा व्यक्ति बिना दूध लिए लिए लाईन से हट गया था ताकि छोटे बच्चे को गोद में लिए वह महिला दूध हासिल कर सके। अचानक तालियों की आवाज आने लगी। लाईन में खड़े सभी व्यक्ति उस शख्स का करतल ध्वनि से अभिनन्दन कर रहे थे।लेकिन उस शख्स ने उस महिला के पास जाकर कहा आपका बच्चा बहुत ही प्यारा है। वह इंग्लैंड का भविष्य है उसकी अच्छी परवरिश करिए। इस घटना की खबर जब प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के पास पहुंची तो वे जर्मनी के जबरदस्त हमलों की विभीषिका से उत्पन्न चिंता से उबरकर बोल पड़े- "हिटलर को संदेश भेज दो , ब्रिटेन की जीत को कोई नहीं रोक सकता क्योंकि यहां के लोग देश पर मंडरा रहे संकट के समय अपना निजी हित भ

आज किसान हताश है निराश है?

चित्र
महफिल मे चलती रही मेरे कत्ल की तैयारी! और हम पहुंचे  तो बोले बहुत लम्बी उम्र है तुम्हारी! शिवम रावत  प्रकृति फागुन के इस मस्त महीने में खिलखिलाती थी, मुस्कराती थी, लोगो के दिलों दिमाग में ताजगी भर देती थी, आज कुपित है, झंझावाती  हवाये चल रहीं है। आसमान से ओले बरस रहे है। बादलो की गङगङाहट के बीच चमकती चपला दहशत पैदा कर रही है बाग बगीचों खेतों में उदासी का माहौल कायम है। किसान अपनी गाढी कमाई की बर्बादी को सोच कर मायूस है। पशुपक्षी भी इस बे मौसम बर्षात से बेहाल है। आसमान पर उमङते घुमङते बादल कहर बरसाने  का इशारा कर रहे है।गजब का मंजर है कांप रहा है किसान प्रकृति के इस आजूबा खेल को देखकर !  खेतों में खङी लहलहाती फसल को देखकर भविष्य का ताना बाना बुनने वाला इस देश का अन्नदाता सरेयाम प्रकृति की महफील में बे मौत मरने के तरफ बढ रहा है।  तेज हवाओं के चलते गेंहू  की फसले धरती पर लोट रहीं है। उपर से पानी का कहर जहर बनकर जीवन की आश पर तुषारापात कर रहा है। जिस तरह आज अभी अभी आसमान से कालिमा के बीच भयंकर बर्षात हो रही है ऐसा तो सावन भादो माह मे भी नही देखा गया था।  कुपित प्रकृति  का नजारा आज देखकर हर

कंजूस का धन...

चित्र
सुधीर "दादा" मुखर्जी द्वारा अपने दोस्त को बताया गया एक वाकया सरिता सिंह  बात 1966 की है। तब कैंची नदी पर इतना बड़ा पुल नहीं था। एक लकड़ी का छोटा सा पुल था। कई बार दोपहर में वे वहीं जाकर बैठ जाते थे और भोजन करते थे। पंद्रह जून के भंडारे से पहले एक दिन वे उसी पुल पर बैठे हुए थे कि बरेली से एक भक्त आये.. ट्रक में.. कुछ पत्तल और कसोरे (मिट्टी का बर्तन) साथ लाये थे भंडारे के लिए.. उन्होंने वह सब वहां अर्पित करते हुए मुझसे कहा, "दादा बताइये और क्या जरूरत है?" उस आदमी के पास बहुत पैसा है.. मैं उसको बहुत अच्छे से जानता हूं... लेकिन दान पुण्य के लिए धेला भी खर्च नहीं करता है... मेरे नहीं कहने के बाद भी वे बार बार यही जोर देते रहे कि बताइये और क्या चाहिए.. बताइये और क्या चाहिए.. उनके बहुत जोर देने पर मैंने कह दिया कि दो खांची (बांस का बना बड़ा बर्तन) कसोरे और भेज दीजिएगा। तब तक बाबाजी चिल्लाये। क्या? क्या करने जा रहे हो तुम उसके साथ मिलकर? है तो सबकुछ। तुम बहुत लालची हो गये हो। कोई कुछ देना चाहे तो तुम तत्काल झोली फैला देते हो."  मैं चुप रहा.. प्रसाद लेने के बाद जब वह व्

‘विश्व एकता’ की प्रतिबद्धता के कारण अनूठा है! भारतीय संविधान - डा0 जगदीश गांधी

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी पर विशेष हमें विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गौरव प्राप्त है:- भारत की आजादी 15 अगस्त 1947 के बाद 2 वर्ष 11 माह तथा 18 दिन की कड़ी मेहनत एवं गहन विचार-विमर्श के बाद भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया। इस दिन भारत एक सम्पूर्ण गणतान्त्रिक देश बन गया। तब से प्रति वर्ष 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। हमें विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गर्व प्राप्त है। 26 जनवरी, 1950 भारतीय इतिहास में इसलिये महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि भारत का संविधान, इसी दिन अस्तित्व मे आया और भारत वास्तव में एक संप्रभु देश बना। भारत का संविधान लिखित एवं सबसे बड़ा संविधान है। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने विश्व के अनेक संविधानों के अच्छे प्रावधानों को अपने संविधान में आत्मसात करने का प्रयास किया है। देशभक्तों की गाथाओं से भारतीय इतिहास के पन्ने भरे हुए हैं:- मातृभूमि के सम्मान एवं उसकी आजादी के लिये असंख्य वीरों ने अपने जीवन की आहुति दी थी। देशभक्तों की गाथाओं से भारतीय इतिहास के पन्ने भरे हुए हैं। देशप्रेम की भावना से ओत-प

-सीख-

प्रकृति का नियम प्रदीप मौर्य    एक भिखारी को रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक सूट बूट पहने सेठ जी दिखे। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख़ माँगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा। वह उस सेठ से भीख़ माँगने लगा।   भिख़ारी को देखकर उस सेठ ने कहा, "तुम हमेशा मांगते ही हो, क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो" ? भिख़ारी बोला, "साहब मैं तो भिख़ारी हूँ, हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ" ?   सेठ - जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है। मैं एक व्यापारी हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ, अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ।   तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस सेठ को उतरना था, वह ट्रेन से उतरा और चला गया। इधर भिख़ारी सेठ की कही गई बात के बारे में सोचने लगा। सेठ के द्वारा कही गयीं बात उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह भी सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ। लेकिन मैं तो भिखारी हूँ,

स्वाभिमान V/S अभिमान

लालमणि मौर्य   थोड़ा सा महत्व मिलने पर दूसरों को लघु समझना अभिमानी होने का प्रमाण है जबकि लघुत्व से महत्व की ओर बढ़ना स्वाभिमानी होने की प्रमाण है। अभिमान में व्यक्ति अपना प्रदर्शन कर दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है इसलिए लोग उससे दूर रहना चाहते हैं। सिर्फ चाटुकार लोग ही अपने स्वार्थ के कारण उसकी वाहवाही करते हैं। इसके विपरीत स्वाभिमानी व्यक्ति दूसरों के विचारों को महत्व देता है इसलिए लोग उसके प्रशंसक होते हैं। स्वाभिमान व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाता है, जबकि अभिमानी हमेशा दूसरों पर आश्रित रहना चाहता है। स्वाभिमान एवं अभिमान के बीच बहुत हल्का सा भेद है। इन दोनों का मिश्रण व्यक्तित्व को बहुत जटिल बना देता है। दूसरों को कम आंकना एवं स्वयं को बड़ा समझना अभिमान है। एवं अपने मूलभूत आदर्शों पर बगैर किसी को चोट पहुंचाए बिना, अटल रहना स्वाभिमान है।

हर व्यक्ति अपने आप मे विशेष होता...

लालमणि मौर्य  जीवन मे प्रतिस्पर्धा का होना बेहद जरूरी है। अगर आपको जीवन बेहतरीन बनाना है तो प्रतिस्पर्धा करनी ही होगी। हर आने वाला दिन आज से बेहतरीन हो तो उसके लिये प्रतिस्पर्धा करनी होगी पर वह किसी और से न होकर अपने आप से होनी चाहिए। इसके लिए आपके अंदर यह भावना होनी चाहिए कि मैंने आज जो किया उससे और बेहतर करके अपने कल को बेहतरीन करूँ। अगर आप प्रतिस्पर्धा दूसरों से करेंगे तो वह खेल हो जाएगा और आपका उद्देश्य सिर्फ हार - जीत हो जाएगा।    हर व्यक्ति अपने आप मे विशेष होता है, अद्वितीय होता है। हर आदमी की अपनी क्षमताएं होती है। जो लोग जीवन मे दूसरों से प्रतिस्पर्धा करते है उनके हिस्से में हमेशा हताशा ही आती है। अगर प्रतिस्पर्धा खुद से हो तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि जब खुद से प्रतिस्पर्धा करते हैं तो आपका विकास अनवरत होता रहता है और आप अपने लक्ष्य के करीब पहुंचते रहते है इस तरह आप हर दिन को आज से बेहतर बनाते हुए एक दिन अपने को लक्ष्य तक पहुंचाने में कामयाब हो सकते और दूसरों से प्रतिस्पर्धा में सदैव हार का डर व असुरक्षा की भावना बनी रहती है और उस डर से उबरने के लिए आप उचित अनुचित

हमें अधर्म से दूर रखना ही सबसे बड़ा अदृश्य फल है -धर्माचरण

चित्र
हम कभी कभी अधर्म को भी धर्म समझ लेते है... धार्मिक व धर्म की मान्यताओ पर जीवन यापन करने वाला व्यक्ति प्रत्येक अधर्म से बच जाता है... सरिता सिंह  आज कल हम अनजाने में भी धार्मिक बन कई तरह के अधर्म कर लेते है। हम कभी कभी अधर्म को भी धर्म समझ लेते है। पर धार्मिक व धर्म की मान्यताओ पर जीवन यापन करने वाला व्यक्ति प्रत्येक अधर्म से बच जाता है। सबसे उत्तम महाराज जी ने इस कलियुग रूपी अधर्म समर में एक मंत्र दिया है जो प्रत्येक अधर्म से दूर कर विवेकी बनाये गा love all serve all feed किसी के जरिये से नही स्वयं अपने हाँथों से यही सीधा रास्ता है, धर्म की कोई भी क्रिया विफल नहीं होती। धर्म का कोई अनुष्ठान व्यर्थ नहीं जाता। किसी न किसी रूप में हमें फल मिलता ही रहता है। कभी हम अनुभव कर लेते हैं, कभी हमें आभास भी नहीं होता। जब हम धर्माचरण करते हैं तो कठिनाइयां भी सामने आती हैं, किंतु ये कठिनाइयां हमारे ज्ञान और समझ को बढ़ाती हैं। धर्ममय आचरण करने पर धर्म का स्वरूप हमें समझ में आने लगता है। तब हम अपने कर्मों को ध्यान से देखते हैं और अधर्म से बचते हैं। हमें अधर्म से दूर रखना ही सबसे बड़ा अदृश्य फल है धर्म

विश्व एकता अनिवार्य 

अन्तर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस ( 20 दिसम्बर) पर विशेष लेख मानव जाति की एकता में ही विश्व के ढाई अरब से अधिक बच्चों एवं आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों का हित सुरक्षित है! डा0 जगदीश गांधी संयुक्त राष्ट्र संघ की 21वीं सदी की अनुकरणीय घोषणा :- संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने वर्ष 2005 में 21वीं सदी में अन्तर्राष्ट्रीय रिश्तों को मजबूत करने में एकता को एक बुनियादी मूल्य के रूप में पहचाना। इस परिपेक्ष्य में सं.रा.सं. द्वारा 20 दिसम्बर को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। जिसका उद्देश्य सदस्य देशों की सरकारों तथा गैर-सरकारी संस्थाओं को गरीबी उन्मूलन तथा सामाजिक विकास को प्रोत्साहन देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का स्मरण कराना है। यह दिवस विश्व के लोगों को प्रगतिशील पद्धतियों को अपनाकर गरीबी उन्मूलन के उपायों को आपसी विचार-विमर्श के द्वारा खोजने के लिए प्रेरित करता है। इस मुहिम के अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं पर विचार-विमर्श किया जाता है :- 1. बारूदी सुरंगों पर प्रतिबन्ध लगाना 2. जरूरतमंदों को स्वास्थ्य तथा दवाईयाँ सुलभ कराना 3. प्राकृतिक आपदाओं तथा मानव

गन्दगी भरी ज़िंदगी जीने को मजबूर

चित्र
मोहम्मद इमरान  कानपुर | एक गली में गंदे नालो का इतना ज्यादा जल भराव है कि इस गली से निकल पाना मुमकिन ही नही नामुमकिन है और गली में विधुत की अंडर ग्राउंड लाइने भी पड़ी हुई है जिससे कभी भी कोई बड़ी अप्रिय घटना घटित हो सकती है हम अप्रिय घटना की बात इसलिए कर रहे है क्यूंकि विगत महीनों पहले ही तलाक महल में ही विधुत की अंडरग्राउंड लाइन से ही सड़क पर करंट आ गया था जिससे एक युवक की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी जिसमे हजारों लोग बिजली विभाग के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन करते नज़र आये थे उसी से कुछ महीनों पहले छोटे मियां हाता में भी अंडरग्राउंड लाइन की चपेट में आकर एक घोड़े की मौत हो गई थी जिसमे सपा के दोनों विद्यायक अमिताभ बाजपेयी और इरफान सोलंकी के साथ सैकड़ो नेता कार्यकर्ता प्रदर्शन करते नज़र आये थे हम इस बात को यहाँ इस लिये नही कर रहे है कि नेता जी लोगो द्वारा जो प्रदर्शन किया गया था वो गलत था हम इस लिए इस बात को याद दिला रहें कि अगर यही नेता जी लोग समय पर ले संज्ञान तो नही होगी ऐसी अप्रिय घटनाएं खैर ये नेता जी लोगो का अपना काम है कैसे करेंगे ये वही जानेहम आते वापस अपने सर्वे पर गली में बिजली की लाइ

आम-आदमी" आखिर है कौन.?

ये ..." आम-आदमी" कौन है? Who is the common  mmon man ? लालमणि मौर्य आम-आदमी" आखिर है कौन...??? किसे कहते हैं हम "आम-आदमी"??? क्या "आम-आदमी" वो है जो इस देश की सरकारें बनाता और बिगड़ता है??? क्या "आम-आदमी" वो है जो हर वक्त "लाइन" में लगने को तैयार बैठा है??? क्या "आम-आदमी" वो है जो फैसला नहीं कर पा रहा है कि सच क्या है??? क्या "आम-आदमी" वो है जो हाँ में हाँ और ना में ना मिला रहा है??? क्या "आम-आदमी" वो है, जो सिर्फ अपने-आपको "आम-आदमी" कहता फिरता है कि मैं "आम-आदमी" हूँ??? सभी राजनैतिक पार्टियाँ, यहाँ तक मैं भी कहता हूँ कि हम "आम-आदमी" के हक और अधिकारों के लिए "काम" कर रहें हैं??? अरविन्द केजरीवाल ने तो "आम-आदमी" के नाम पर अपनी राजनैतिक पार्टी ही बना डाली। मेरे एक मित्र है लुधियाना पंजाब के वो मुझे पंजाब के चुनावी सिलसिले की जानकारी दी थी कि पंजाब के  चुनावी सिलसिले में, "आम-आदमी" पार्टी ने पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ाए जा रहें हैं। प

भ्रष्टाचार दूर करने की शुरूआत स्वयं से करनी चाहिए! -प्रदीप

चित्र
(अन्तर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस पर विशेष) निर्माणों की पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूले, स्वार्थ साधना की आंधी में हम वसुधा का कल्याण न भूले!... संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक समस्या भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने के लिए आज अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के रूप में घोषित था। भ्रष्टाचार एक जटिल सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ऐसी घटना है जो कि सभी देशों को प्रभावित करता है। भ्रष्टाचार लोकतांत्रिक संस्थानों को नजरअंदाज कर, आर्थिक विकास को धीमा कर देता है और सरकारी अस्थिरता में भी योगदान देता है। इस दिवस के उपरोक्त लक्ष्यों को प्रिन्ट, इलेक्ट्रिानिक्स तथा सोशल मीडिया, शिक्षण संस्थानों, भाषणों, वाद-विवाद, संगठनों आदि के माध्यम से अधिक से अधिक प्रचारित तथा प्रसारित करना चाहिए। नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त नेल्सन मण्डेला के अनुसार शिक्षा सबसे शक्तिशाली उपकरण है जिससे सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है। बच्चों को बाल्यावस्था से ही कानून तथा संविधान को सम्मान देने की सीख देना चाहिए। भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष

सरदार पटेल जैसे साहसी ऐसे वल्र्ड लीडर की आज आवश्यकता

चित्र
('राष्ट्रीय एकता दिवस' भारत की एकता और अखण्डता के शिल्पकार सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती विशेष) ... सरदार पटेल ने 565 रियासतों को मिलाकर अखण्ड भारत का निर्माण किया ... आज सरदार पटेल जैसे साहसी ऐसे वल्र्ड लीडर की आवश्यकता है जो सभी देशों को मिलाकर विश्व संसद तथा विश्व सरकार का गठन कर सकें! ... वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात सारे विश्व को एक कुटुम्ब बनाने का समय आ गया है! भारत की एकता और अखण्डता के शिल्पकार सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में देश भर में 31 अक्टूबर को मनायी जा रही है। अक्टूबर, 2014 में भारत सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्म दिवस को प्रत्येक वर्ष 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की थी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद इस बार सारा देश सरदार वल्लभभाई पटेल की 144वीं जयंती गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में धूमधाम से मना रहा है। उत्तर प्रदेश की सरकार हर थाने मंे देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल के चित्र लगाने का निर्णय किया है। सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टू

एक पागलपन से कम नजर नहीं आता नियमित प्रकाशन 

चित्र
प्रकाशन के पन्द्रह वर्ष...  किसी भी राष्ट्र का स्वरूप दिव्यदर्शन और उसके शक्तिशाली संगठन व प्रचारकों के माध्यमों पर टिका का होता है | यह  ठीक है, कि हम और हमारे संगठन प्रचार के बल पर विश्व में अपनी विशेष पहचान व भागीदारी चाहते हैं | आज सरकारी बंदिशों के चलते नया प्रकाशन शुरू करना इतना आसान नहीं है | इसके लिए एक अच्छी पूंजी चाहिए जो कि बिना लाभ की कामना के वर्षों फंसी रहे | प्रकाशन कार्यालय चाहिए, प्रेस व्यवस्था भी चाहिए, प्रकाशन को नियमित चलाने के लिए आर्थिक योगदान व सहयोग देने वाले पाठकों और संवाददाताओं का समर्पित ग्रुप चाहिए | ध्यान देने वाली बात यह है कि जब कोई प्रकाशन प्रारंभ किया जाता है, तो सरकारी नियमों के अनुसार कुछ आवश्यक नियम पूरे ही करने पड़ते हैं, तभी सरकारी सुविधा मिलती है | इस खानापूर्ति व जांच के चक्कर में कई बार देरी होती है कभी-कभी तो सरकारी मशीनरी द्वारा जानबूझकर तंग किया जाता है | यदि यह कार्य  एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो वह निर्विवाद व निष्पक्ष होना चाहिए अन्यथा एक दूसरे की टांग खिंचाई में संगठन का प्रचार माध्यम बनते बिगड़ते रहते हैं | यह एक कड़वी सच्चाई है कि