गुरु नानक देव का 553 वां जयंती महोत्सव

गुरु नानक देव का 553 वां जयंती महोत्सव पर विशेष 

  • जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल 
  • धन गुरु नानक सारा जग तारिया 

गुरु नानक देव ने अपना जीवन मानव समाज के कल्याण में लगा दिया था..

सैकड़ों वर्षो से उनका प्रकाशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है

किशन भावनानी

वैश्विक स्तरपर भारत एक पूरी तरह से समर्पित आध्यात्मिक भावों का धनी, आस्था का प्रतीक और मानव समाज की सेवा उनके कल्याण के लिए भारत माता की पावन धरती पर सैकड़ों संत महात्मा पीर ज्ञात अज्ञात ईश्वर अल्लाह तुल्य मनीषियों का जन्म इस धरा पर हुआ और अपना कल्याण कार्य परोपकार कर अपना उद्देश्य पूर्ण कर अलौकिक लोक में चले जाते हैं। परंतु उनका नाम अमर रहता है। 

मानवीय जीवन के दिलों में बसा रहता है इसीलिए यहां ऐसे परमपिता परमेश्वर की जयंती को धूमधाम और खुशियों से मनाया जाता है। चूंकि 8 नवंबर 2022 को बाबा गुरु नानक देव का जयंती महोत्सव है इसलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,धन गुरु नानक सारा जग तारिया। बाबा जी ने अपना पूरा जीवन मानव समाज के कल्याण में लगा दिया जो आज भी हमारे दिलों में बसे हुए हैं। 

साथियों बात अगर हम धन गुरु नानक सारा जग तारिया की करे तो गुरु नानक देव ने दुनिया के महापुरुषों और संतों में वह ऊंचा स्थान प्राप्त किया जिसे शायद ही कोई पा सका हो। आज (08 नवंबर 2022 को) उनकी 553वीं जयंती या कहें 553 वाँ प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। गुरु नानक देव ने अपने ओजस्वी और भक्तिपूर्ण विचारों के दम पर वह मुकाम हासिल किया जिसे राजा महाराजा भी अपनी पूरी सेना के साथ नहीं हासिल कर पाते। वह दुनिया के लिए एक ऐसे महान विचारक थे, जिनके विचार कई सदियों तक लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करते रहेंगे। भारत भूमि में जन्म बहुत से महापुरुषों ने समाज को एक नयी राह दिखाने का काम किया है। हर युग में लोग उनके विचारों से प्रभावित हुए हैं। ऐसे ही महापुरुषों में गुरु नानक देव जी भी हैं। 

गुरु नानक की शिक्षाएं और विचार आज भी सांसारिक जीवन में भटके हुए लोगों को राह दिखाने का काम करते हैं। बाबाजी ने अपनेउपदेशों से पूरे विश्व को आध्यात्मिक ज्ञान और महान विचारो से इस धरती को प्रकाशमय किया था ।बाबाजी के विचार जातिवाद, कौम, धर्म तथा भाषा के आधार पर होनेवाले भेद भाव से उच्च थे। वह सभी लोगो के प्रति समानता का भाव रखते उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन काल मानवता की भलाई और सेवा करने में गुजार दीया।

साथियों बात अगर हम गुरुनानक देव जी की करें तो उनका जन्म 1526 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन, भोई की तलवंडी में हुआ था। इस जगह को राय भोई दी तलवंडी भी कहते हैं। जानकारी हो कि अब ये जगह पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है। इस जगह का नाम गुरु नानक देव के नाम पर ही रखा गया था।बतादें कि राजा महाराजा रणजीत सिंह ने ननकाना साहिब गुरुद्वारा बनवाया था, इसलिए इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में प्रकाश उत्सव मनाया जाता है। पूरी शब्दावली, जन्म - गुरु नानक देव जी कार्तिक पूर्णिमा, संवत् १५२७ अथवा 15 अप्रैल 1469 राय भोई की तलवंडी, (वर्तमान ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान, पाकिस्तान) चोला त्याग - 22 सितंबर 1539 करतारपुर, स्मारक समाधि -  करतारपुर, कार्यकाल- 1499–1539, पूर्वाधिकारी - जन्म से, उत्तराधिकारी-गुरु अंगद देव,धार्मिक मान्यता-सिख पंथ की स्थापना, जीवनसाथी- सुलक्खनी देवी,माता-पिता-लाला कल्याण राय (मेहता कालू जी), माता तृप्ता देवी जी के यहां हिन्दू परिवार मे यों अंतिम स्थान -करतारपुरर। 

गुरुनानक देवजी के वचनों की करें तोउनके उपदेशों वचनों की गाथा सनानें शब्द कम पड़ जाएंगे फिर भी हम उदाहरण के रूप में दो वचन जरूर लेंगे। नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥ एक ओंकार सतनाम, करता पुरखु निरभऊ। निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।। हुकमी उत्तम नीचु हुकमि लिखित दुखसुख पाई अहि।

थापिआ न जाइ कीता न होइ।आपे आपि निरंजनु सोइ। भावार्थ- भगवान अजन्मा निराकार माया अतीत अटल सिद्धस्वरूप अनादि एवं अनंत है

जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु।नानक गावीऐ गुणी निधानु। भावार्थ - जिसने गुरु की सेवा की उसे सर्वोत्तम प्रतिष्ठा मिली इसीलिए हमेशा गुरु के गुणों का गायन करना चाहिए।  

हम बाबाजी के उपदेशों और विचारों की करें तो, केवल वही बातें बोलें जो आपको मान सम्मान दिलाए, अपनी कमाई का दसवां हिस्सा परोपकार और अपने समय का दसवां हिस्सा प्रभु भक्ति में लगाना चाहिए, हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहो क्योंकि आप जब किसी की मदद करते हैं तो ईश्वर आपकी मदद करता है, यदि तू अपने दिमाग को शांत रख सकता है तो तू विश्व पर विजई होगा, जो इंसान कड़ी मेहनत करके कमाता है और अपनी मेहनत की कमाई में से थोड़ा सा दान करता है तो वह सत्य मार्ग ढूंढ लेता है, कठिनाई के दौर से भरी इस दुनिया में जिसे अपने आप पर भरोसा होता है वही विजेता कहलाता है, जो प्रेम किया करते हैं उन्होंने ईश्वर को पा लिया है जैसे लाखों उपदेश हैं। 

वर्तमान परिपेक्ष में बाबाजी के विचारों को उनके अनुयायियों में देखें तो यह अब किसी एक समुदाय नहीं अपितु विशाल क्षेत्र में आ चुका है, जिसका सेवालाभ पुरी मानव जाति के लिए हो रहा है जिसका साक्षात जीवंत उदाहरण मैंने कोरोना काल में अपने गोंदिया नगर में आंखो देखी देखा कि किस तरह खालसा सेवादल, हरे माधव परमार्थ सेवा समिति वालों ने कोविड महामारीके पीक समय में जब राष्ट्रीय लॉकडाउन था तो गरीब रोटी के लिए लाचार हो गए थे तब बाबा गुरु नानक देव के अनुयायियों ने शासकीय अधिकारियों के मार्गदर्शन से बिना शासकीय मदद के करीब आठ से दस हज़ार भोजन पार्सल रोजाना गरीबों में बांट रहे थे। सेवादारों ने कोरोना मेडिकल कैंप लगाए थे जिसमें सेवा भागीदार मैं इसका ग्राउंड रिपोर्टिंग गवाह हूं। उसी तरह सीज़गंज दिल्ली सहित अन्य शहरों में भी इस तरह की सेवाएं बाबाजी के अनुयायियों द्वारा फ़्री ऑक्सीजन सप्लाई सहित अनेक सेवाएं की जा रही थी जिसकी रिपोर्टिंग मीडिया में आई थी मेरा मानना है कि गुरु नानक देव की प्रेरणा पीढ़ी दर पीढ़ी उनके अनुयायियों में प्रभावित हो रही है जो मानवीय सेवा के बहुत अच्छे संकेत हैं जो आध्यात्मिकता का जज्बा प्रभावित प्रवाहित हो रहा है जयंती उत्सव में हर साल उत्सव बढ़ता जा रहा है जो काबिले तारीफ़ है।  

गुरु नानक देव जी की अनेक कथाओं की करें तो वैसे तो गाथाएं बहुत है पर हम यहां एक गाथा की चर्चा जरूर करेंगे। गुरु नानक देव का विवाह 16 साल की उम्र में ही हो गया था। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मीचंद थे, बेटों के जन्म के बाद गुरु नानक देव अपने साथियों के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल गए,उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश का हिस्सा यात्रा करते हुए व्यतीत किया और करतारपुर में देह त्याग किया, ये पावन जगह पाकिस्तान में है। नानक देव ने भारत, फारस अफगानिस्तान अरब सहित कई देशों में भ्रमण करते हुए उपदेश दिये। इन यात्राओं को पंजाबी में 'उदासियां'कहते हैं, गुरु नानक देव जी ने जीवन भर मानवता एवं एक ईश्वर की प्रार्थना का संदेश दिया था। 

श्री गुरु नानकजी ने अपने शिष्य मरदाना और बाला के साथ सं 1500ईस्वी से 1526 ईस्वी के बीच कुल पांच यात्राएँ की थी। जिसमे उन्होंने लगभग 2400 केएम तक की दूरी पैदल चलके पूरी करि थी। जिसमे वहा भारत, फ्रांस, अरब और अफगानिस्तान के प्रमुख स्थानों पे गए थे।

श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं के दौरान लोगो को उपदेश देने के माध्यम से कई कविताएं और दोहो की रचनाये की थी। जिन्हे बाद में सिख के सबसे पवित्र ग्रन्थ “गुरु ग्रन्थ साहिब” में सम्मिलित कर लिया गया था। 1523-1524 और अपनी पांचवी और अंतिम यत्र में पंजाब के सभी भागो को कवर किया। अपने परिवार सहित करतापुर(पाकिस्तान) में आ कर बस गए और यहीं उन्होंने अपनी आखरी सांस भी ली थी। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरु नानक देव की 553 वींजयंती महोत्सव 8 नवंबर 2022 पर विशेष है। जो  बोले सो निहाल सत श्री अकाल, धन गुरु नानक सारा जग तारिया,गुरु नानक देव ने अपना जीवन मानव समाज के कल्याण में लगा दिया था - सैकड़ों वर्षो से उनका प्रकाशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। 

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