ऋषि सुनक बने ब्रिटिश प्रधानमंत्री

भारत, भारतीयों, हिंदुओं को क्या? 

युनाइटेड किंग्डम के राजा चार्ल्स तृतीय ने ऋषि सुनक को ब्रिटेन का प्रधान मंत्री नियुक्त कर दिया है। सुनक को पिछले 200 वर्षों में ब्रिटेन का अब तक का सबसे कम उम्र का प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ है, वे कंजर्वेटिव पार्टी के सबसे अधिक सम्पतिवाले सांसद भी हैं। 

सुनक ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बननेवाले भारतीय मूल के पहले राजनेता हैं। यही नहीं, वे एशियाई मूल के भी पहले व्यक्ति हैं और पहले अश्वेत भी हैं जो युनाइटेड किंग़्डम का प्रधानमंत्री बने हैं। प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद सुनक ने भारतीय मूल की ही सुएला व्रेवरमैन को अपना गृहमंत्री भी बना लिया है। हालांकि सुनक का औपचारिक रूप से पदग्रहण संभवत: 28 अक्टूबर को होगा । 

सुनक के पूर्वज अविभाजित भारत से केन्या (अफ्रीका) होते हुए ब्रिटेन पहुंचे थे। इसीलिए उन्हें भारतीय मूल का कहा जा रहा है। हालांकि उनके पूर्वज भारत के जिस भाग के निवासी थे, वह अब पाकिस्तान में  है। इस तरह वे पाकिस्तानी हैं। लेकिन चूंकि वे हिंदू हैं और भारत के नारायण मूर्ति एवं सुधा मूर्ति (इंफोसिस के फाउण्डर) दम्पति के दामाद भी हैं, शायद इसीलिए भारतीयों को लगता है कि वे भारतीय मूल के ही हैं। जो भी हो, यह एक खुशनूमा सोच है। ऋषि सुनक जी को बहुत-बहुत बधाइयां।      

परंतु सवाल उठता है कि आख़िर हम दोहरी मानसिकता का जीवन जीना क्यों पसंद करते हैं और राजनीति में दोहरा चरित्र क्यों निभाते हैं ? भारतीय परम्परा के अनुसार बेटियां शादी के बाद विदा हो कर ससुराल चली जाती हैं और अपने ससुराल पक्ष का ही उपनाम, गोत्र आदि धारण कर लेती हैं। नारायण मूर्ति दम्पति की बेटी अक्षता मूर्ति सुनक से व्याह कर ब्रिटेन चली गईं और ब्रिटिश नागरिक बन गईं। 

भारत में मायका होने के अलावा और कोई खास नाता नहीं रहा उनका यहां से। ऋषि सुनक के तीन पीढी पहले के पूर्वज भारत छोड़ चले  गए और अब सुनक का ससुराल के अलावा भारत से कोई अन्य खास नाता नहीं रहा। फिर भी कुछ अति उत्साही लोग सुनक दम्पति का रामनामी चादर ओढ़े पूजा करता हुआ फोटो वायरल करा रहे हैं और उसके साथ यह कैप्शन में दो शीर्ष पदधारी राजनेताओं के नाम लिख कर बता रहे हैं कि केवल भारत में ही  धार्मिक प्रतीक धारण करनेवाले वैसे नेता नहीं हैं..! लेकिन वैसे लोग यह नहीं बता रहे हैं कि ईसाइयों के वर्चस्व वाली सरकार और देश में जिस तरह एक हिंदू प्रधानमंत्री बन गया है, उसी तरह  हिंदुओं के वर्चस्ववाली पार्टी और देश की सरकार में एक भी मुसलमान मंत्री क्यों नहीं है ? 

इस तरह ऋषि सुनक के भारतीय होने पर गर्व किया जा रहा है और उससे भी अधिक उनके हिंदू होने पर गर्व किया जा रहा है। जन्मना हिंदू होने से उनको यह अधिकार है कि वे रामनामी ओढ़ कर पूजा करें या गाय पूजें अथवा गीता का श्लोक पढ़कर सांसद पद की शपथ लें, इसमें न किसी को कोई ऐतराज है और न यह कोई विवाद का विषय है। परंतु देखनेवाली बात यह होगी कि क्या प्रधानमंत्री के रूप में सुनक किसी मंदिर का भी उद्घाटन करेंगे, पूरे सरकारी तामझाम के साथ महाकाल को भी पूजेंगे और चुनाव प्रचार में क्या यह भी कहेंगे कि जिस तरह ईसाइयों के चर्च एवं कब्रिस्तान के लिए जगह दी जाती  है, उसी तरह हिंदुओं के श्मशान के लिए भी जगह दी जाएगी ? यह अलग बात है कि ऋषि सुनक हिंदू होते हुए भी (खबर है कि) बीफ खाने को बढ़ावा देने की भी बात करते हैं।    

टीवी पर तो एक सज्जन बोल रहे थे कि अब उनका सीना 56 इंच से बढ़ कर 65 इंच का हो गया है। गर्व और खुशी का अनुभव तो हमें भी हो रहा है, क्योंकि हमारे गर्व के विरुद्ध ब्रिटेन से अभी तक ऐसी कोई खबर नहीं आई कि किसी ब्रिटिश लीडर ने भारतीय मूल का प्रधानमंत्री बनने के विरोध में अपना मुंडन करवा लिया हो या करवाने की धमकी दी हो। ऐसी खबर की प्रतीक्षा इसलिए हो रही है, क्योंकि जब राजीव गांधी से व्याह कर इटली की अन्टोनिया एड्विज अल्बीना माइनो दशकों पहले भारत आ गईं थीं, माइनो से सोनिया गांधी बन गईं थीं, भारतीय बन गईं थीं, हिंदू बन गईं थीं, दो हिंदू बच्चों की मां बन गईं थीं, सांसद बन गईं थीं, देश की आज़ादी में अहम भूमिका निभाने वाली राजनीतिक पार्टी की अध्यक्ष बन गईं थीं, तब भी भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के माननीय / माननीया लीडरान ने यह धमकी दी थी कि विदेशी मूल की सोनिया गांधी उर्फ अंटोनिया माइनो यदि भारत की प्रधानमंत्री बन गईं तो वे अपना सिर मुड़वा लेंगे / लेंगी। इतना ही नहीं, दुनिया की वह सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी हर चुनाव में विदेशी मूल का यह शगूफा भी छोड़ती ही रहती है। आख़िर राजनीति में इतना दोहरा चरित्र क्यों ? एक हिंदू राजनेता मुसलमानी टोपी पहन लेता है तो उसे धर्मभ्रष्ट और वोट के लिए तुष्टीकरण करना कह दिया जाता हैं, उससे भी बढ़ कर कुछ लोग उस नेता को देशद्रोही तक कह देते हैं। किंतु यदि कोई मुसलमान गीता का श्लोक पढ़ देता है तो उसे सिर पर चढा कर उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। आख़िर ऐसा दोहरा धार्मिक राजनीतिक चरित्र क्यों ? ‘हिंदू’ शब्द ‘देशभक्त’ शब्द का पर्यायवाची कब से हो गया ? 

अब हम ऋषि सुनक के भारतीय मूल के होने के चलते भारत के प्रति ब्रिटेन की विदेश और व्यापार नीति में अनुकूलता की उम्मीद की भी मीमांसा कर लें।  मेरा मानना है कि उनके भारतीय मूल के और हिंदू होने का हमें कोई विशेष फायदा नहीं मिलनेवाला। जो कुछ भी मिलेगा वह भारत जैसे विशाल देश और बाजार के प्रति ब्रिटेन की आर्थिक, व्यापारिक और वैदेशिक नीति की स्वाभाविक गति-मति के चलते मिलेगा। चाहे विद्यार्थियों, नौकरी के लिए जानेवालों, व्यापारियों और अक्सर आवागमन करने वाले अन्य भारतीयों को वीजा देने में सहूलियत का मामला हो या आयात-निर्यात को बढावा देने का मामला, सुनक सभी नीति ब्रिटिश हित को ध्यान में रख कर ही तय करेंगे। और, उन्हें वैसा ही करना भी चाहिए। यदि कोई यह अपेक्षा पाले बैठा हो कि वे अपने देश हित की उपेक्षा कर भारत और भारतीयों के हित के लिए नीतियां बनाएंगे, तो वह अंदर से बेईमान व्यक्ति होगा, क्योंकि ऐसी अपेक्षा तो खुलेआम धार्मिक भाई-भतीजावाद करने और देशविरोधी कार्य के लिए किसी को उकसाने जैसी बात मानी जाएगी। और मेरा मानना है कि कोई भी स्वाभामानी और देशभक्त भारतीय ऐसी अपेक्षा पाल ही नहीं सकता और सुनक जैसा देशभक्त वैसा कर ही नहीं सकता । 

इसके अलावा यह भी देखनेवाली बात है कि ऋषि सुनक की तरह ही अमेरीकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, मॉरीशस के प्रधान मंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ, पुर्तगाली प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा, सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी, सिंगापुर की राष्ट्रपति हलीमा याकूब, गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली और सेशेल के राष्ट्रपति वावेल रामकलावन (रामखेलावन भी कह सकते हैं) आदि भी भारतीय मूल के ही हैं। तो आख़िर उनके चलते भारत के प्रति उन देशों का रूख अतिरिक्त रूप से कितना फायदेमंद रहा? 

खैर, ऋषि सुनक का ब्रिटेन का प्रधान मंत्री होना विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वे उस ब्रिटेन के पहले अश्वेत और वह भी भारतीय मूल के पहले प्रधानमंत्री बने हैं, जिस ब्रिटेन ने 200 वर्षों तक भारत पर राज किया था और जिसने अपने साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं देखा था । इसलिए हम भारतीयों को तो अतिरिक्त रूप से गर्व होना ही चाहिए। उसके बावजूद उसी के चलते किसी अतिरिक्त रूप से अनुकूल रूख की उम्मीद करना ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से अपरिपक्वता होगी। संभवत: इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने ऋषि सुनक को बधाई देते समय बहुत ही संतुलित और परिपक्व प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

सबसे बड़ी बात यह है कि ब्रिटेन में लोकतांत्रिक राजतंत्र है या राजतंत्रीय लोकतंत्र है। दोनों ही रूपों में (अलिखित) संविधान के अनुसार वहां आधा-अधूरा प्रजातंत्र ही है, फिर भी वहां काम होता है पूर्ण प्रजातांत्रिक तरीके से। वहां सरकार बनाने का मैंडेट कंजर्वेटिव पार्टी को मिला था, इसलिए पार्टी ने एक के असफल होने पर अथवा एक के द्वारा वादे पूरे नहीं किए जाने पर तीन महीनों में तीन प्रधान मंत्री दे दिए। सुनक ने राजा चार्ल्स तृतीय द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद अपने पहले अधिकृत संबोधन में कहा भी था कि “मैंडेट पार्टी को मिला है, किसी व्यक्ति को नहीं। इसलिए देश और पार्टी की एकता के लिए कार्य करना है” । लेकिन हम तो पूर्ण प्रजातंत्र हैं, फिर भी काम कर रहे हैं आधे-अधूरे प्रजातांत्रिक तरीके से और सरकार बनाने के लिए मैंडेट भी दे रहे हैं किसी पार्टी को नहीं, बल्कि एक व्यक्ति को यानी परिवारवाद के प्रति कौन कहे, व्यक्तिवाद के प्रति पूरी तरह समर्पण कर गए हैं, परंतु परिवारवादी कहते हैं दूसरों को, और वादे पूरे नहीं करने पर जॉनसन अथवा लिज ट्रस की तरह इस्तीफा नहीं देते, बल्कि उन वादों को जुमला कह देते हैं ! आख़िर राजनीति में ऐसी दोहरी मानसिकता क्यों?        

अपनों से इन्हीं सवालों के साथ एक बार फिर ऋषि सुनक जी को हार्दिक बधाइयां।

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