आध्यात्मिक संतुष्टि का प्रभु प्रार्थना ही एकमात्र स्रोत है!
हमारे प्रत्येक कार्य ही प्रतिदिन प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बने -डा0 जगदीश गाँधी,
लखनऊ
(1) आध्यात्मिक संतुष्टि का प्रभु प्रार्थना ही एकमात्र स्रोत है:-
यह मानव जीवन हमें एकमात्र अपनी आत्मा के विकास के लिए मिला है। जब हम संसार से निराश हो जाते हैं, तब हम अपनी आत्मा के पिता परमपिता परमात्मा की ओर पूरी तरह से मुड़ जाते हैं और यही वह क्षण होता है जब कि हमें कहीं-न-कहीं से जीवन में आगे बढ़ने के लिए उचित मार्गदर्शन मिल जाता है। प्रार्थना अध्यात्म का ‘प्राण’ और ‘सार’ है और कोई भी व्यक्ति प्रार्थना के बिना उद्देश्यपूर्ण ढंग से जी ही नहीं सकता। इसलिए प्रार्थना मनुष्य के जीवन का मर्म होनी चाहिए। प्रार्थना जैसे अध्यात्म का सबसे मार्मिक अंग है, वैसे ही मानव-जीवन का भी है। प्रार्थना मनुष्य को फौलाद की तरह मजबूत बना देती है। वास्तव में पूजा या प्रार्थना वाणी से नहीं बल्कि हृदय से करने की चीज है। सच्चे हृदय से की हुई प्रार्थना चमत्कार कर सकती है। जीवन में आत्मिक सुख प्रार्थना से मिलता है। प्रार्थना आत्मा के विकास के लिए आवश्यक है।
(2) प्रार्थना हृदय को पवित्र बनाने की प्रक्रिया है:-
परमात्मा आत्म-तत्व है इसलिए उसे इन भौतिक आंखों से नहीं देखा जा सकता। परमात्मा की समीपता की अनुभूति तो हमें अपनी आत्मा के माध्यम से होती है। वास्तव में हर पल आत्मा के विकास के लिए जीना ही वास्तविक जीवन है। परमात्मा से हमारा जन्मों-जन्मों का नाता है। तभी वह हमें अपनी आत्मा के विकास के लिए युग-युग में अवतारों के रूप में, इस धरती पर अवतरित होकर, पवित्र ग्रन्थों की शिक्षाओं के माध्यम से सदा-सदा के लिए प्रेरित करता रहता है। इसलिए हमें कभी भी अपनी आत्मा की आवाज को अनसुनी नहीं करना चाहिए। हमारे दैनिक कार्यों में व्यवस्था, एकता और शांति लाने का एकमात्र उपाय प्रार्थना है। प्रार्थना एक प्रकार का आवश्यक आध्यात्मिक अनुशासन है। अनुशासन और संयम ही हमें पशुओं से अलग करता है। हमारी प्रार्थना तो अपने हृदय को पवित्र बनाने की एक सरल एवं सहज प्रक्रिया है। वह तो हमें ही यह स्मरण दिलाती है कि हम प्रभु के सहारे के बिना लाचार हैं।
(3) तेरा नाम ही मेरा आरोग्य है, तेरा स्मरण ही मेरी औषधी:-
प्रार्थना तो आत्मा की खुराक है। जिस तरह खुराक के बिना शरीर कमजोर होता जाता है, उसी तरह प्रार्थना के बिना हमारी आत्मा कमजोर हो जाती है। फलस्वरूप आत्मा का विकास रूक जाने से हमारा जीवन असंतुलित हो जाता है। प्रार्थना तभी प्रार्थना है, जब वह अपने-आप हृदय से निकलती है। ऐसा कोई भी कार्य नहीं होता, जिसका कि कोई फल न हो और प्रार्थना तो सबसे उत्तम कार्य है। पवित्र ग्रन्थों से हमें जो दिव्य ज्ञान मिल सकता है वह हमें कही और से नहीं मिल सकता। मृत्यु किसी भी क्षण आ सकती है। इसलिए रात्रि में सोने के पूर्व अपने कर्मों का लेखाजोखा कर लेना चाहिए।
(4) सारी धरती एक देश के समान है:-
हम सब एक सागर की बूंदों तथा एक वृक्ष के पत्तों के समान हंै। इसलिए आओ हम सब एकता की डोर से
बांधकर सारे विश्व को एक कर दें। एक कर दे हृदय अपने सेवकों के हे प्रभु। हम पर हमारे जीवन का महान उद्देश्य उजागर कर। परमात्मा की बनायी यह सारी धरती एक देश के समान है। प्रभु का प्रथम उपदेश है एक शुद्ध, दयालु एवं प्रकाशित हृदय धारण कर ताकि पुरातन, अमिट एवं अनन्त श्रेष्ठता का साम्राज्य तेरा हो। हमें सदैव न्याय की राह में चलकर जीवन में हमेशा सूरज की तरह प्रकाशित रहना चाहिए।
(5) पवित्र ग्रन्थों का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए है:-
सभी पवित्र ग्रन्थ जैसे गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे-अकदस, किताबे अजावेस्ता आदि-आदि का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए हंै। गीता का सन्देश एक लाइन में यह है कि न्याय के लिए अपने
बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। त्रिपटक का सन्देश है कि वर्ण (जाति) व्यवस्था ईश्वरीय आज्ञा नहीं है वरन् समता ईश्वरीय आज्ञा है। बाइबिल का सन्देश है कि पृथ्वी का साम्राज्य उनका होगा जो दूसरों पर दया करेंगे। कुरान का सन्देश है कि ऐ खुदा, सारी खिलकत को बरकत दे। जब हम सारी मानव जाति की भलाई करेंगे तब नानक का नाम हमंे ऊँचाई पर ले जायेगा। किताबे-अकदस का सन्देश है कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। परमात्मा के करोड़ों नाम हमने रखे हैं। क्या परमात्मा ऐसा भी हो सकता है कि केवल किसी एक धर्म के अनुयायियों के लिए अपना ज्ञान दे। परमात्मा की शिक्षायें समय-समय पर विभिन्न अवतारों के माध्यम से परमपिता परमात्मा से सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए आयी हैं।
(6) लोक कल्याण के अलावा कोई धर्म नहीं है:-
जब-जब प्रभु इच्छाओं को जानकर उन शिक्षाओं पर चलने वालो की कमी हो जाती है अर्थात् जब-जब धर्म की हानि होती है तथा धरती पर अन्यायी एवं अधर्म प्रवृत्ति के लोगों की संख्या सज्जन व्यक्तियों की तुलना में अधिक बढ़ जाती है तब-तब मानव जाति का मार्गदर्शन करने के लिए परमपिता परमात्मा राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, महावीर, बहाउल्लाह, अब्राहम, मोजैज, जोरास्टर आदि-आदि के रूप में युग-युग में अवतरित होते रहते हंै। हमारी आत्मा के पिता परमात्मा का धर्म अर्थात कर्तव्य लोक कल्याण है इसलिए पिता-पुत्र के धर्म अर्थात कर्तव्य में फर्क नहीं हो सकता। परमात्मा के धर्म की तरह हमारा धर्म भी लोक कल्याण ही है। परमात्मा सबको बिना किसी भेदभाव के प्यार करता है यहीं मनुष्य का भी धर्म है।
(7) परमात्मा के सन्देशवाहक नैतिक मूल्य को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित करते है:-
परमात्मा के अवतार लोक कल्याण के लिए किसी एक नैतिक मूल्य को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित करते हंै। ‘मर्यादा’ नैतिक मूल्य है लेकिन राम ने 7500 वर्ष पूर्व उसे सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित किया। ‘न्याय’ नैतिक मूल्य है लेकिन कृष्ण ने 5000 वर्ष पूर्व ‘न्याय’ को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित किया। इसी प्रकार 2500 वर्ष पूर्व बुद्ध ने ‘समता’ को, 2000 वर्ष पूर्व ईशु ने ‘करूणा’ को, 1400 वर्ष पूर्व मोहम्मद ने ‘भाईचारे’ को, 500 वर्ष पूर्व नानक ने ‘सच्चा सौदा (त्याग)’ को तथा 200 वर्ष पूर्व बहाउल्लाह ने ‘हृदय की एकता’ को सामाजिक मूल्य बनाकर प्रचारित किया।
(8) बच्चों को सभी शिक्षाओं से जोड़ना चाहिए:-
हमें बच्चों को राम की ‘मर्यादा’, कृष्ण के ‘न्याय’, बुद्ध की ‘समता’, ईशु की ‘करूणा’, मोहम्मद के ‘भाईचारे’, नानक के ‘सच्चा सौदा (त्याग)’ तथा बहाउल्लाह के ‘हृदय की एकता’ के गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। ये सारे ईश्वरीय गुण बालक को ‘टोटल क्वालिटी पर्सन’ बनाने में सहायक हैं। केवल उद्देश्यपूर्ण क्लास रूम के द्वारा ही समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है। अर्थात शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम हैं। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। हमें रोजाना अपने प्रत्येक कर्म को प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बनाने का निरन्तर प्रयास करना चाहिए।