महारानी अहिल्याबाई सच्ची राष्ट्रवादी

 

...समस्या हैं तो समाधान भी हमारे ही पास है के सिद्धांत पर हल भी निकाल लिया..
निवेदिता मुकुल सक्सेना

भारत का इतिहास कई सत्ताधारी महान नारियो से जाना जाता रहा है। जिन्होने अपने बल, बुद्धि और समर्पण भाव, सरल- सहज, दुरदृष्टि, जरूरतमंदो की सेवा और सद आचरण से जनता की  सुख व समृद्धि को अपनी पूजा समझते हुये एक सच्ची मानव सेवा को चरितार्थ किया। इन्ही में मालवा प्रान्त ही नही अपितु भारत के प्रबुद्ध शासक वर्गो मे  महारानी अहिल्याबाई की भी अग्रणी भुमिका रही। मालवा क्षेत्र की शासक महान सत्ताधारी नारी जिन्हे जनता भी देवी कहकर अभिवादन किया करती थी आज उनका जन्मदिन अवश्य है लेकिन वर्तमान राजनिति को देखते हुये  उनका ध्यान अपने आप ही आ जाता हैं। 

"महारानी अहिल्याबाई" होल्कर होल्कर वंश की बहू एक कुशल शासक के रुप मे जानी जाती रही हैं जिनका जन्म भी एक साधारण परिवार मे छोटे से गाँव चोंड़ि अहमदनगर महाराष्ट्र में हुआ। अहिल्यादेवी का बहुत  कम उम्र मे  विवाह मल्हार राव होल्कर के पुत्र खाण्डेकर राव होल्कर से हुआ। 

एक आदर्श भारतीय नारी की तरह महारनी अहिल्या ने अपनी पारिवरिक दायित्वो के साथ अपनी सत्ता को भी बडे ही सहज तरिके से सम्हाला। कहना गलत नही होगा। उन्होने परिवार ,समाज व सत्ता मे विकट स्थितियो का समाना किया कई गम्भीर चुनौतियो जब उनके समक्ष आयी तो स्वाभविक हर नारी की तरह एक बार तो वो भी विचलन मे आयी लेकिन हमारी है समस्या हैं तो समाधान भी हमारे ही पास है के सिद्धांत पर हल भी निकाल लिया। कई समाजिक बुराइयो जैसे विधवाओ के प्रति समाज मे हिन भाव से उन्हे तिरस्कृत करते रहना व नारी उत्थान के लिये  नारी शिक्षा सशक्तीकरण को उन्होने प्राथमिकता दी व इसी सिद्धांत  के बल पर स्वयं भी उन्होने शिक्षा प्राप्त की।  

अहिल्या बाई एक धार्मिक महिला रही वह शिव आराधना लीन रहते हुये अपने कार्यो को शिव का आदेश मानकर करती रही यहा तक की उनके  हस्ताक्षर को भी अपने नाम की जगह श्री शंकर लिखती रही। कहते है ना भोले बाबा भी भोले भक्तो का सफलता पुर्वक मार्ग प्रशस्त करते ही है। ये एक अन्धविश्वास नही वरन वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझते हुये उनकी भक्ति मे लीन रहते हुये जन सेवा को आधार बनाया। साथ ही भारत में सैकडो मन्दिरो व घाटो के निर्माण मे आर्थिक सहयोग प्रदान किया इस कारण  भी उन्हे प्रतिद्वंदियों का विरोध सहना पडा। खैर उन्होने इस बात की परवाह ना करते हुये धार्मिक कार्यो मे सहयोग करती रही जिन्हे आज अगर हम देखे तो शासन के करोड़ो खर्चे के बाद भी परिणाम की सार्थकता नजर नही आती। 

बहरहाल, अहिल्याबाई के बेहिसाब धार्मिक कार्यो मे खर्चे व हिन्दुत्ववादी विचारधारा पर लगाम लगाने हेतू कयी विधर्मी समय समय पर विरोध करते रहे यहा तक की उनके बनवाये मन्दिरो "हिन्दू धर्म की बाहरी चोकिया " तक कहा गया। ये सभी विधर्मियों का एक वो गुट था जिन्हे डर था की "मालवा व महाराष्ट्र" मे हिन्दू वादी विचारधारा का संचरण ना हो जाए। उस समय तक वैसे भी घुसपेठिये अन्ग्रेज भी अपने पैर जमा चुके थे व उनके जेसे उनके साथी मुगल भी महारानी अहिल्याबाई की सतत धार्मिक  राजनैतिक- सामाजिक  कार्यो की सफलता से घबराते रहे। ये सत्य है कि जहा जहा सफ़लता कदम चूमती हैं। 

वही अंदर ही अंदर पनप रहे हानिकारक जीव (विध्वंसकारी) बिमारी उत्पन्न करते है फिर एक नारी हो तो इन हानिकारक जीवो की संख्या असंख्य हो जाती है राजनैतिक व सामजिक कार्यो को एक साथ अंजाम देना उस समय विवादास्पद था व सत्ताधारी नारी होना तो और भी ।मुश्किल वही सारे विवाद परिवार से ही शुरु हो जाते हैं  लेकिन ससुर मल्हार राव होल्कर का  विश्वास व साथ उनके साथ सदा बना रहा। 

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