सर्वलोक हित से बढ़कर कोई दूसरा कार्य नही -सम्राट अशोक


सम्राट अशोक महान की 2326वीं जयंती चैत्र द्वितीय पक्ष अष्टमी दिनाँक 20 अप्रैल 2021 शाक्य सम्वत 2583 के संदर्भ में
शाक्य वैभव मौर्य
नास्ति ही कमतरं सर्वलोक हितप्पा अर्थात 'सभी लोगो के हित से बढ़कर कोई दूसरा कार्य नही ' का अद्वितीय विचार देने वाले, लोककल्याणकारी शासक सम्राट अशोक महान केवल भारत ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व के पहले शासक हैं जिन्होंने जनता की मनोवृत्ति में नैतिकता का विचार समाहित करके धम्म नीति से शासन किया। 
भारत के प्रथम ऐतिहासिक राजवंश मौर्यवंश संस्थापक राष्ट्रनायक सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र एवं महाराज बिन्दुसार मौर्य व महारानी शुभद्रांगी मौर्य के पुत्र के रूप में  304 ई.पू. में चैत्र द्वितीय पक्ष अष्टमी को अशोक का जन्म हुआ। एक राजकुमार के रूप में अशोक ने अपनी बेहतर रणनीति , कुशल सैन्य एवं प्रशासनिक क्षमता के साथ अवन्ति व तक्षशिला के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। 273 ई.पू. में सम्राट बिन्दुसार की मृत्यु के बाद अशोक शासक बने जबकि इन्होंने अपना औपचारिक राज्याभिषेक 269 ई.पू. में कराया। 
चकराता, उत्तराखंड से प्राप्त अशोक के 13वें शिलालेख के अनुसार राज्याभिषेक के 9वें वर्ष कलिंग युद्ध जीतने के बाद  सैन्य विजय का युग समाप्त हो गया तथा शांति, समृद्धि, सामाजिक एवं नैतिक प्रगति के नए युग का सूत्रपात हुआ जिसे धम्म विजय युग कहा गया। सम्राट अशोक के धम्म की संकल्पना में अनुष्ठान, कर्मकांड न होकर  सामाजिक व शासन व्यवस्था की नैतिक संहिता का समावेश  है । धम्म शब्द पाली भाषा का है जो आगे चलकर संस्कृत में धर्म हो गया।
अब बात करते है सम्राट अशोक के धम्म की तो सम्राट  अपने दिल्ली टोपरा स्तम्भ लेख में स्वयं से प्रश्न करते है - कियं च धम्मं अर्थात धम्म क्या है? और फिर स्वयं उत्तर देते है - अपशनिवे बहुकियाने दया दाने सचये सोचए मादवे सादवे च अर्थात अल्प पाप करना, बहुत लोगो का कल्याण करना, दया करना, दान करना, सत्यवादिता, पवित्रता, मृदुता एवं सज्जनता का व्यवहार करना ही धम्म है। उपरोक्त सूत्र के अनुसार अशोक के धम्म को 8 लक्ष्यों में विभाजित कर सकते हैं।
पहले लक्ष्य में अशोक कम पाप करने की बात करते है। 5 प्रकार के पाप उग्रता, निष्ठुरता, क्रोध, अहंकार एवं ईर्ष्या का उल्लेख करते है। धम्म का दूसरा लक्ष्य लोककल्याण करना है जिसमें मानव के साथ पशु, पक्षी सभी शामिल है इस लोककल्याण की भावना को जनता के मन मे समाहित करने  के साथ खम्भात की खाड़ी के पास दुनिया के पहले  पक्षियों एवं जानवरो के अस्पताल का निर्माण कराया गया। धम्म का तीसरा उद्देश्य है दया  अर्थात मानव, जीव जंतु, सभी पर करूणा  का भाव बनाकर रखना। धम्म का चौथा लक्ष्य दान है अर्थात जरूरतमंद लोगों की सहायता, वस्तु हस्तांतरण, के साथ असहाय, निर्धन लोगो के कल्याण का प्रयास करना। 
धम्म का यह लक्ष्य तथागत बुद्ध की दान पारमिता से जुड़ा है। सचे अर्थात सत्यवादिता का व्यवहार धम्म का पाँचवां लक्ष्य है  सत्यवादिता मानव के अन्तःकरण की शुद्धता का साधन है जिससे सकारात्मक विचारों का प्रसार होता है। धम्म का छठा उद्देश्य है पवित्रता। इस पवित्रता में शारीरिक के साथ मानसिक दोनों शुद्धता शामिल है। मानसिक पवित्रता विचारों की शुद्धता है जो नैतिकता के प्रोत्साहन में शारीरिक पवित्रता की पूरक है। यह विचार बुद्ध के चौथे एवं पाँचवे शील से सम्बंधित है।धम्म के सातवें लक्ष्य में सम्राट अशोक मादवे अर्थात मृदुता या अहिंसा की बात करते है। जो बुद्ध के पहले शील 'पाणातिपात विरत' अर्थात अकारण प्राणी हिंसा न करने से जुड़ा है जो आधुनिक समय मे गाँधी जी का मुख्य सिद्धान्त रहा। 
अहिंसा के इस स्वरूप में केवल शारीरिक ही नही अपितु मानसिक अहिंसा भी शामिल है। अर्थात किसी से ऐसी बात न करना  जिससे दूसरे के मन मे व्यथा उत्पन्न हो जो हिंसा का प्रतिनिधित्व करें। अपने धम्म के आठवें एवं अंतिम लक्ष्य में सम्राट साधुता अर्थात सज्जनता की बात करते है साथ ही अपने अधिकारियों एवं जनता को संदेश देते है कि सज्जनता का व्यवहार करके ही मानव आपस मे प्रेमभाव से एक साथ रह सकता है।
अशोक का धम्म एक राजधर्म न होकर मानवीय, सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का समुच्चय है जिसमें जनता की शक्ति शामिल होती है। राज्यविहीन समाज जिसकी बात आधुनिक समय मे मार्क्स एवं गाँधी ने की यदि राज्यविहीन  समाज वास्तव में हुआ तो  इसका संचालन केवल अशोक के धम्म से हो सकता है। क्योंकि  जनता की मनोवृत्ति, सोंच, विचारधारा में नैतिकता एवं आचरण की शुद्धता शामिल होगी जिसका निर्देशन लोगो को स्वयं करना होगा। 
अशोक का तीसरा , चौथा एवं तेरहवाँ शिलालेख क्रमशः ज्येष्ठ जनों, रिश्तेदारों एवं अध्यापकों की परवाह एवं सम्मान करने की बात करता  है। साथ ही दूसरे एवं ग्यारहवें शिलालेख में माता-पिता की सेवा, मित्र, परिचित, सम्बन्धी एवं साधुओं  के प्रति उदारता , दासों से उचित व्यवहार के साथ सबके प्रति सम्मान एवं आदर करने का संदेश शामिल है।
अब बात करते है सम्राट अशोक  के शिलालेखों एवं उसका संदेश की जो हमारे भारतीय संविधान में भी शामिल है।- सम्राट कहते है सर्वलोक हित से बढ़कर कोई दूसरा कार्य नही अर्थात लोककल्याणकारी राज्य बनाना ठीक यही अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 38 में ली गयी है कि भारत मे लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना करना शासन का लक्ष्य होगा।
सम्राट अशोक  गिरनार व शाहबाज़गढ़ी के अपने 12 वें  लेख में कहते है कि सभी सम्प्रदायों के लोग एक जगह रहे एवं एक दूसरे की बातों को सुनने के साथ अपने  सम्प्रदाय के विचारों एवं सिद्धान्तों का प्रचार प्रसार करें तथा दूसरे सम्प्रदाय की निंदा न करें। 
प्राचीन विश्व मे समवाय अर्थात  सहिष्णुता की बात हो तो सम्राट अशोक व उनके शिलालेख अद्वितीय व अनुपम उदाहरण है। हमारे  संविधान का अनुच्छेद 25 किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता देता है साथ अनुच्छेद 26 धार्मिक कार्यो के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता  है। सम्राट के शिलालेख संदेश देते है कि सभी  लोग अपने विचार व्यक्त करें ठीक यही अवधारणा अनुच्छेद 19 में वाक एवं  आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में शामिल है। सम्राट ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा को सन्तान व समान माना अर्थात किसी के साथ अस्पृश्यता का भेदभाव न  करने का संदेश दिया हमारे संविधान का अनुच्छेद 17 भी अस्पृश्यता को खत्म करने का प्रावधान करता है। 
सम्राट अपने दूसरे शिलालेख में सबको अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने हेतु जगह-जगह औषधीय पौधों को लगाने का निर्देश देते है साथ ही जानवरो, चिड़ियों के अस्पताल का निर्माण कराते है ठीक इसी  प्रकार संविधान के अनुच्छेद 39 में लोगो के स्वास्थ्य स्तर बढ़ाने की बात की गई है। सम्राट के अभिलेख संदेश देते है लोगो के पोषण स्तर में सुधार के लिए अनाज वितरण की व्यवस्था की जाती थी साथ ही संविधान के अनुच्छेद 47 में पोषण स्तर सुधारने का प्रावधान है। सम्राट के लुम्बिनी अभिलेख से ज्ञात होता है कि सम्राट ने कुछ करो को माफ किया व कुछ करो को कम किया जिससे कृषको का सुधार हो सके ठीक इसी प्रकार अनुच्छेद  48 में कृषि सुधार की बात की गई है।शाहबाज़गढ़ी के प्रथम शिलालेख में सम्राट कहते है किसी जीव को मारकर उसकी हत्या न कि जाए ठीक यही बात संविधान के अनुच्छेद 48 में पशुबलि पर रोक लगाने के रूप में बताई गयी  है।
सम्राट का संदेश है कि सभी लोग अपने आसपास के वातावरण व वन्यजीव जन्तुओ का संरक्षण तथा नदी, झीलों, तालाबो का संरक्षण व निर्माण करें जिसका उदाहरण सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार कराना है। यही सिद्धान्त संविधान के मौलिक कर्तव्यों में शामिल है। सम्राट के शिलालेख संदेश देते है कि मेरे सभी पड़ोसी राज्य मित्रता बनाये रखे एवं शांति में सहयोग करें ठीक यही अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 51 में अंतर्राष्ट्रीय  शांति व सुरक्षा बढ़ाने में योगदान देने के सन्दर्भ में कही गयी है। जब बात श्रीनगर के संस्थापक सम्राट अशोक की हो तो मौर्यकालीन स्थापत्य कला की बात करना स्वाभाविक है , अशोककालीन कला का प्रारूप, लक्षण, गुणवत्ता वर्तमान समय मे हमारे लिए विरासत के साथ प्रेरणास्त्रोत  है। 
चुनार के लाल पत्थरों पर राजकीय संरक्षण में निर्मित स्तम्भों के साथ स्तूप, विहार एवं गुहा बेहतरीन इंजीनियरिंग का उदाहरण है , स्तम्भों की चमकदार ओप ( पालिश ) वर्तमान समय मे भी कलाकारों, इतिहासकारों, इंजीनियरों,एवं पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।  भगवान बुद्ध द्वारा धम्म चक्क पबत्तन अर्थात प्रथम धम्म  उपदेश की ऐतिहासिक घटना की स्मृति में  सम्राट अशोक द्वारा निर्मित सारनाथ का चतुर्दिशी सिंह स्तम्भ मौर्यकालीन कला का सर्वोत्तम उदाहरण है। यह स्तम्भ चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तरखण्ड का बना हुआ है।इसे अशोक-लाट और सारनाथ सिंह स्तम्भ  कहा जाता है। इसका शीर्ष 7 फुट ऊँचा है। इस पर 4 आकर्षक सिंह पीठ से पीठ सटाये हुए चारों दिशाओं की ओर मुँह  किए गर्जना करते हुए एक प्रहरी के रूप बैठे हुए हैं। ये सिंह चक्रवर्ती सम्राट अशोक की शक्ति,साहस अथवा बुध्द की देशना के प्रतीक हैं। मूलतः चारों सिंह के मस्तक पर एक महाधम्मचक्र स्थापित था जिसमें 32 तीलियां थीं जो टूटी-फूटी अवस्था मे सारनाथ में संरक्षित है।यह चक्र शक्ति पर धम्म की विजय का प्रतीक है। चारों सिंह के नीचे हाथी,घोड़ा,बैल तथा सिंह की आकृतियों उत्कीर्ण हैं। इसमें हर पशु के बीच में 24 तीलियों वाले चक्र भी उत्कीर्ण हैं जिसे भारत के राष्ट्रध्वज में भी अपनाया गया है।
गणतन्त्र भारत की सरकार ने अशोक स्तम्भ को 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया। इस स्थापत्य के साथ नगरीकरण का विकास हुआ क्योंकि इन स्थानों पर लोगो का आवागमन शुरू हुआ। धम्म प्रचारक भेजने की नीति  से केवल धम्म नीति ही नही साथ ही भारत की विदेश नीति का निर्माण हुआ जिसमें शांति, अहिंसा के गुणों का समावेश था जो आज भी लगभग तेईस सौ साल बाद भी हमारी विदेश नीति का  आधार है। 
इस प्रकार भारत के  ज्ञात इतिहास में  सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र केवल एक धम्म दूत ही नही बल्कि किसी भी देश मे भारत के पहले राजदूत है। सम्राट अशोक के शिलालेखों को चार लिपियों खरोष्ठी, ग्रीक, अरेमाइक तथा ब्राह्मी  लिपि में लिखा गया, ये शिलालेख भारत के ज्ञात इतिहास में प्रथम ऐतिहासिक स्त्रोत है जिनसे किसी कालखण्ड की वास्तविक जानकारी प्राप्त होती है इसी समय भारत मे लिपि का वास्तविक विकास हुआ। अशोक के चार  शिलालेखों मास्की, गुर्जरा, उदयगोलम एवं मेत्तूर में उनका अशोक नाम उत्कीर्ण है। साथ ही भाब्रू शिलालेख में सम्राट ने स्वयं को बौद्ध धम्म से प्रेरित एवं अनुयायी बताया है। 
आज परमाणु हथियारों की होड़ के समय मे  नैतिकता की आचार संहिता, विश्व शांति के साथ लोककल्याण, मानव कल्याण की भावना से पूर्ण सम्राट अशोक का धम्म विश्व का पहला अमिट संविधान है जिसे पत्थरों पर लोहे की कलम से लिखा गया, जो आज भी संयुक्त राष्ट्र संघ एवं भारतीय संविधान के लक्ष्य, उद्देश्य एवं आदर्शों में समाहित एवं संकलित  है।

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