जो राष्ट्र समृद्ध होता है उसको विश्व गुरु बनते देर नहीं लगता

 जनकल्याण में छिपा राष्ट्र  का पुनरुत्थान

मयंक मनुभाई जोशी 
भारत, जिसे किसी समय विश्व गुरु की उपाधि प्राप्त थी, वैश्विक स्तर पर भारत और उस से जुड़ी हर चीज के प्रति सम्मान का भाव होता था, लोग भारत की धरा से निकले हुए हर विचार को स्वीकार करते थे और उसपर अमल करते थे। भारत ने सैकडों महान विचार सिद्धांतों को जन्म दिया। 
भारत के बंगाल से निकले संत स्वामी विवेकानंद ने समस्त विश्व में भारत की संस्कृति और भारतीय विचार का डंका बजा दिया यह किस से छिपा है। शिकागो में दिए उनके भाषण को कौन नहीं जानता, जिसके बाद पश्चिम के देशों में भारत के लिए सम्मान का भाव प्रगाढ़ हुआ। जो मंत्र हमारे धर्म ग्रंथों में सदियों से लिखा हुआ है और जिसे हम भारतीय वर्षों से आत्मसात करते आये हैं, उस "वसुधैव कुटुम्बकम" के मंत्र को आज विश्व के सभी देश अपना रहे हैं। 
महानता की पहली कड़ी ही शांति और दया है...
परंतु आज के इस दौर में जब हर देश एक दूसरे से हर मोर्चे पर प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं और अपने देश को सभी मोर्चों पर सबसे अव्वल रखना चाहते हैं तब यह और भी जरूरी हो जाता है की हम भी अपने देश, संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए हमारे ग्रंथो में लिखे गए और हमारे महापुरुषों द्वारा सुझाये गए रास्तों पर फिर से अमल करना शुरू करें। क्योंकि यही एक रास्ता है जो भारत को विश्व गुरु के रूप में पुनर्स्थापित कर सकता है। 

विश्व गुरु बनने का अर्थ कदापि इस बात से नहीं निकालना चाहिए की हमारे पास कितने आधुनिक हथियार हैं, फाइटर जेट्स हैं, मरीन हैं, सेना की संख्यां कितनी है! विश्व गुरु बनने के लिए आपके पास वैचारिक हथियार होने चाहिए, विश्व गुरु बनने का रास्ता शांति, सद्भावना और जनकल्याण में छिपा है। हमारे महापुरुषों ने हमें यही तो सिखाया है, शांति और अहिंसा ही हमेशा समृद्धि के दरवाजे खोलती है, जो राष्ट्र समृद्ध होता है उसको विश्व गुरु बनते देर नहीं लगता। 

महानता की पहली कड़ी ही शांति और दया है। हजारों वर्ष पहले जब भारत विश्व गुरु था तब हमारे पास कोई हथियार,  सेना और फाइटर जेट्स नहीं थे। हमारे पास अगर कुछ था तो व्व थे हमारे महान विचार।  पिछले कुछ दशकों में जब भारत की साख विश्व में कमजोर हो रही थी, तब इस भारत की जनता ने परिवर्तन किया और आज उसी परिवर्तन का परिणाम है कि आज पुनः भारत विश्व गुरू बनने की राह पर अग्रसर है। 

जब समस्त विश्व कोरोना की जकड़ में था तब भारत उस कोरोना से मुक्ति के उपाय ढूंढने में व्यस्त था। भारत ने तत्परता दिखाते हुए सबसे पहले कोरोना वैक्सीन बनाया और इतना ही नहीं समस्त विश्व में गरीब देश के लेकर विकसित देश तक को वैक्सीन पहुंचाया। भारत ने अपने फायदे या नुकसान की चिंता नहीं की। जान लेने से ज्यादा महानता जान बचाने में होता है। इसी सिद्धांत का पालन करते हुए भारत के लिए लोगों के प्राणों की रक्षा करन और मानव जाति को इस माहमारी से बाहर निकालना पहली प्राथमिकता थी।

आज बड़े से बड़ा देश हो या छोटे से छोटा देश हर कोई भारत के इस तत्परता की तारीफ तो कर ही रहा है साथ ही भारत ने जिस तरह से दिल खोलकर बिना किसी फायदे की चिंता किये सभी देशों तक मदद पहुँचाया है उसका भी लोहा मान रहा है। इस एक कदम से आज भारत की पहचान को वैश्विक स्तर पर मजबूती मिली है। आज पूरा विश्व हर क्षेत्र में भारत की तरफ आशाओं के साथ देखता है और भारतीय सुझाव-विचारों को स्थान  देता है। विश्व में भारत की पकड़ मजबूत हो रही है।

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