सड़क, बिजली और विकास का भ्रम!

विकास का मसीहा बनकर राज कर रही सरकार?

मंजुल भारद्वाज


भूमंडलीकरण के बाद हर सरकार सड़क बनाने और हर घर तक बिजली पहुँचाने का महान कार्य कर विकास की माला जप रही है. पर सरकार सड़क और बिजली पर इतना ज़ोर क्यों दे रही है? क्या सरकार पूरी सच्चाई और ईमानदारी से जनता की भलाई कर रही है? उसका सीधा जवाब है नहीं और उसके मुख्य कारण हैं. निजीकरण भूमंडलीकरण का प्राण है. इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी जिसको मूलभूत ढ़ांचा कहते हैं का विकास अनिवार्य है. जिसका मतलब है सड़क और बिजली. सड़क निर्माण लाभ की मलाई है.


सड़क निर्माण निजी कम्पनियों के मुनाफ़े की खान है. सरकार अपनी सहभागिता का ढोंग करती है पर सारा खेल निजी कम्पनियों का है . सड़क बनाने का ठेका नेताओं के लिए कुबेर की खान है. इसलिए संसद में सबसे पहले यह आंकड़ा छाती ठोंक कर दिया जाता है की सड़क बनाने की रफ़्तार क्या है. सड़क बनने के बाद टोल टैक्स जनता की सरेआम लूट है. असल मकसद सड़क निर्माण का है, देश की सम्पदा को जल्दी से लूटना! बिलकुल वैसे ही जैसे अंग्रेजों ने भारत में रेल का जाल बिछाया था. जनता का विकास सरकार को करना था तो सरकार बताये कितने सरकारी स्कूल खोले गए कितने सरकारी अस्पताल बनाये. बिजली  उत्पादन नदियों और कोयला खदानों की लूट का बड़ा खेल है.



भारत के जैविक और पर्यावरण को बिलकुल बिजली की रफ़्तार से तबाह किया जा रहा है. अगर सरकार जन हित में समर्पित होती तो सरकारी बिजली ढांचा विकसित करती और सस्ती दरों पर बिजली सप्लाई करती. आज बिजली कम्पनियां पर्यावरण का विध्वंस कर जनता और सरकार को लूट रही हैं! कभी हाईवे पर विदेशी गाड़ी में सफ़र करते हुए देखियेगा की कितने वन काट दिए गए,कितने पेड़ों की बली चढ़ गई और हाईवे पर चलती गाड़ी में आग लगने से कितने लोग ज़िन्दा उस कार में जल गए. ऐसा विकास है की ज़िन्दा जला देता है अर्थी या चिता की जरूरत नहीं पड़ती! तो जिन लोगों को लगता है की सड़क और बिजली बनाकर सरकार बड़ा विकास कर रही है वो भ्रम में हैं सरकार किसी की भी होती ‘सड़क और बिजली’ बनेगी यह सरकार की मजबूरी है क्योंकि उसके पूंजीपति आकाओं के मुनाफ़े के लिए जरूरी है.


राजीव गाँधी ने कहा था की सरकार केवल 15 पैसे जनता तक पहुंचा पाती है मोदी सरकार अब पूरा पैसा डिजिटली डकारने के बाद जनता के गुल्लक को लूट रही है और विकास का मसीहा बनकर राज कर रही है!



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