(व्यंग) एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आता। ‘मामाजी…मामाजी- लड़के ने लपक कर चरण छूए। वे पहचाने नहीं….बोले- तुम कौन ? मैं मुन्ना….आप पहचाने नहीं मुझे ? मुन्ना ? वे सोचने लगे….. हाँ, मुन्ना….भूल गये आप मामाजी….खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये। तुम यहां कैसे ? मैं आजकल यहीं हूं अच्छा हां मामाजी अपने भानजे के साथ बनारस घूमने लगे। चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर। फिर पहुँचे गंगाघाट। सोचा, नहा लें। मुन्ना, नहा लें ? ज़रूर नहाइए मामाजी….बनारस आये हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है ? मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर गंगे। बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब, लड़का…मुन्ना भी गायब ‘मुन्ना…ए मुन्ना…. मगर मुन्ना वहां हो तो मिले। वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं। क्यों भाई साहब…..आपने मुन्ना को देखा है? कौन मुन्ना ? वही जिसके हम मामा हैं। मैं समझा नहीं…. अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना। वे तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे….मुन्ना नहीं मिला। भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है……चुनाव के मौसम में कोई आता है और हम