पलकों को सजाते रहें..

-मंजुल भारद्वाज


सपने आते रहें


पलकों को सजाते रहें


धुंध में टहलते हुए जीवन की


परत खोलते रहें


जो सवाल हैं


जिनसे तपाते हैं


दिन रात अपने को हम


वो तरंग बन जाते हैं


हमारी जीवन दृष्टि अनुसार


वो आकार लेते हैं


धुंधले धुंधले


आप पास खड़े रहते हैं


कभी हूक बनकर


जीवन धारा बदल देते हैं


कभी फुर्सत की चादर ओढ़े


सवेरा होने तक


अलसियाते रहते हैं


आपका अपना क्या है


इस दुनिया में


सपनों के सिवा


सपने पहचान हैं


जीते जी भी


जाने के बाद भी


जो पूरे हो गए


वो मिसाल बन गए


अधूरे दुनिया की प्रेरणा


इसलिए सपनों का आने दें


पलकों को सजाने दें !


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