मजदूर तेरी इबादत है

मंजुल भारद्वाज


मजदूर
मेहनत, जुनून
दुर्गम रास्तों के
मसीहा होते हैं
कुदरती संसाधनो के
प्रतिबद्द रखवाले
मुनाफ़ाखोर नस्लों से
लोहा लेते शिल्पकार
पशुता,दासता,सामन्तवादी
सत्ताओं को उखाड़ने वाले
अपना मुक्कदर लिखने वाले
मुक़द्दस मेहनतकश संगठक
उठ आज भूमंडलीकरण के ख़िलाफ़
विविधता और मनुष्यता की हत्या को
रोकने वाला बस तू ही है सर्वहारा
लोकतंत्र को पूंजी की क़ैद से
तू ही आज़ाद कर सकता है
सत्ता के तलवे चाटता मुनाफ़ाखोर मीडिया
पूंजी की चौखट पर टंगी
अदालतों की बेड़ियों को
तू ही तोड़ सकता है
अपने खून से लाल लिखने वाले
ऐ माटी के लाल अब उठ
विकास के विध्वंस को रोक
पढ़े लिखे,विज्ञापनों के झूठ को
सच मानने वाले अनपढ़ों से
तू ही धरती को बचा सकता है
हाँ मुझे पता है तुझे संगठित करने वाले
खुद अपनी अपनी मुर्खता से विखंडित हैं
आज तूझे लाल झंडों की नहीं
समग्र राजनैतिक समझ की जरूरत है
पता है तू टुकड़ों टुकड़ों में बिखरा है
पर अब तेरे जिंदा रहने के लिए
तेरी मुठ्ठी का तनना जरूरी है
देख तेरे पास खोने के लिए
कुछ नहीं है
तू आज जहाँ खड़ा है
वहां सिर्फ़ मौत है
देश के स्वतंत्र सेनानियों ने
तुझे संविधान की ताकत दी है
संविधान का पहला शब्द
तेरी इबादत है
दुनिया में मजदूरों का इतना
संवैधानिक सम्मान कहीं नहीं है
मार्क्सवाद के नाम पर बने
तानाशाही साम्राज्यों में भी नहीं
ध्यान से पढ़ और समझ
संविधान के इन शब्दों को
हम भारत के लोग
यानी हम भारत के मालिक
संगठित हो, उठ
अहिंसा का मार्ग अपना
संविधान सम्मत हथियार उठा
अपने वोट को अपना इंकलाब बना
क्रांति सदियों का सपना नहीं
तेरी ऊँगली का फलसफ़ा है
इंक़लाब जिंदाबाद!


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