माँ मुझे....

सुरेंद्र सैनी


हे माँ 
मैंने देखे हैं 
तेरी आँखों से झरते आँसू 
जो पिता के लड़खड़ाते क़दमों के 
दहलीज के भीतर आते ही 
भर आए थे तेरे नेत्रों में.
और जिन्हें तूने समेट लिया था
अपनी पलकों के अंदर.
हाँ मैंने महसूस किए हैं 
तेरे नैनों से गिरते आँसू
जो आज बेरोजगार भाई के
आवारा क़दमों के नीचे 
एक पल में रोंदे गए. 
तेरे आँसू 
जो सपनों की पीड़ा से उग आए थे. 
जिन्हें तूने घुटक लिया था 
अपने कंठ में. 
मैंने देखे हैं तेरे आँसू 
जो जवान होती बहन के 
ब्याह की फ़िक्र में 
उठे थे तेरी पलकों पर. 
जिन्हें तू छिपाना चाहकर भी 
छिपा ना पायी 
अपने आप से और मुझ से. 


हे माँ 
मैं गवाह रही हूँ 
तेरे हर आँसू की 
जो इन दुनियावी नातों ने 
दिये हैं पल-पल तुझे
अपने गरल भरे पंजों से. 


तभी तो माँ तू मुझे 
गर्भ में ही मार देना चाहती थी. 
ताकि तेरी तरह मुझे भी
पीना ना पड़े वजय-बेवजय 
अपमान के ज़हर का घूंट. 


नहीं माँ नहीं 
मुझे मिली है एक नई ऊर्जा
तेरी आँख से गिरते आँसुओ से 
इन सभी का मुकाबला करने की
मैंने पा ली है शक्ति
अपना हक़ लेने की 
और अपना वजूद बचाने की
मैं छीन लुंगी 
अपने हिस्से का आकाश 
तेरी उस नीलकंठ छवि से.


माँ तूने मुझे जन्म दिया है
लेकिन मुझे अजन्मा मत रहने दे.
मुझे भी आगे बढ़ने दे 
मुझे भी खुली हवा में साँस लेने दे.
तुम देखना माँ 
मैं लड़ूंगी हक़ के लिए 
और करुँगी संघर्ष
और जियूँगी एक मनुष्य की तरह.
बस माँ मुझे 
अजन्मा मत रहने दे. 


 


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