दासता के मखमल में सो गए

मंजुल भारद्वाज 


भूमंडलीकरण ने पूरे विश्व को 
बंधवा मज़दूर बना डाला 
पढ़े लिखों को 
सूट बूट वालों के लिए 
डैकैतों का गिरोह बना डाला 
कहीं चोरी छुपे नहीं 
सब खुलेआम है 
सब लुट पिट कर 
मुस्कुरा रहे हैं 
मैं नहीं लुटा का 
भजन गा रहे हैं 
कहीं कोई अपने आप से 
सवाल नहीं पूछता 
क़र्ज़ के मालपुए से भरा 
मुंह नहीं खुलता 
पढाई लिखाई 
गुलामी का ज़रिया हो गई 
श्रम,ज़मीन,जायदाद,ज़मीर
सब चंद लोगों की 
सम्पत्ति हो गए 
अपना सब बेच 
हम विकास ले आये 
आज़ादी का दामन छोड़ 
दासता के मखमल में सो गए !


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