ज़िंदगानी ले जाओ... 

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


मुझपर जो गिरी वो दमानी^ ले जाओ. (बिजली )
मेरे प्यार की कोई निशानी ले जाओ. 


मेरे हरफों की क्या क़ीमत तय करते हो, 
यकीन के साथ मेरी ज़ुबानी ले जाओ. 


तुम्हें देने को मेरे पास बाकी कुछ नहीं, 
बस, कुछ अच्छे वक़्त की कहानी ले जाओ. 


चढ़ता आफ़ताब^ सभी की सलामी का सबब^.(सूर्य, बहाना )
तुम भी चलते कारवां की रवानी ले जाओ. 


अब तक की ज़िन्दगी अरबदा^ में गुजरी.  (संघर्ष )
चलो मेरे हिस्से की शामदानी^ ले जाओ.  (ख़ुशी )


तेरे साथ रहते वक़्त तभी गुजर जाता है, 
दरमियाँ की उजली सुबह, शाम सुहानी ले जाओ. 


मुझे नयी-नयी नज़्म कहने का शौक है, 
मेरे लफ़्ज़ों में बँधी मेरी बयानी ले जाओ. 


कभी-कभी तन्हाई में मुझे याद किया करना, 
लाया हूँ संभालकर शराब पुरानी ले जाओ. 


जाति-बिरादरी का तो कभी ध्यान ही न रहा, 
बस इंसानियत में डूबी अदानी^ ले जाओ.  ( बहुत पास वाले )


तू जा रहा है तो दिल मेरा उदास है बहुत, 
जाते -जाते मेरी आँख का पानी ले जाओ. 


तमाम उम्र मोहब्बत को तरसते निकल गयी, 
"उड़ता "मेरी ख्वाहिशों भरी ज़िंदगानी ले जाओ. 


 


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