फिसलते जाते बिना जीने की उम्मीद

डॉ इला रंजन


अपनों के चेहरे के उपर एक नया
अजनबियों का मुखौटा लगा देखना,
जीने का मकसद ही बदल देता है .!
"कब" और "कैसे" के उधेड़बुन में फंसे,
निरन्तर हम निराशाओं की खाईं में गिर,
फिसलते जाते बिना जीने की उम्मीद लिए.!!


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