नज़र आ गया...
मुददतों बाद मेरा दोस्त
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
मुददतों बाद मेरा दोस्त नज़र आ गया.
जैसे तपते सहरा में समंदर नज़र आ गया.
किसी बेचैनी में मायूस हुआ जाता था,
आज लोट कर नसीब मेरा घर आ गया.
अबतक की महफ़िल ख़ामोशी में गुजरी है,
तेरे दम,मुझमें बातें बनाने का हुनर आ गया.
अब तो तुम भी हर बात पर मुस्कुराते हो,
लगता है मेरी सोहबती का असर आ गया.
सारे शहर में ढूँढा, मुझे तू दिखाई ना दिया,
तुझे खोजते-तलाशते मैं इधर आ गया.
क्यों तुझे खल रही है ये बुलंदी मेरी,
जो तू मुझे बदनाम करने पे उतर आ गया.
महफ़िल चली लम्बी सभी यार-दोस्त बैठे रहे,
पता ना चला,कब जाम लगाते सहर^ आ गया. (सुबह )
तंग थी गलियां बहुत, ऊँचे-नीचे थे रास्ते,
पगडंडियों पर चलते,देखो शहर आ गया.
अपने अक्स को निहारना क्या समझदारी है,
इस ठहरे हुए पानी में कैसे भंवर आ गया.
वो जवाब देने में बहुत वक़्त लेता है अकसर,
मुश्किल था फैसले पर आना, वो मगर आ गया.
लगा उसकी रूह मार दूंगा, वो अगर आ गया,
"उड़ता "क़त्ल करने का, तुझमें जिगर आ गया.