मेरा राष्ट्र हर जंग के लिए तैयार..

सुरेंद्र सैनी


वतन से हूँ.... 


मैं जो कुछ  भी हूँ वतन से हूँ. 
अभी तक के अपने जतन से हूँ. 
मैंने जो पाया यहीं से पाया, 
बाकी तो अपनी आदतन से हूँ. 
मेरे संस्कार मुझे यहीं मिले हैं, 
मैं सनातन-पुरोधा पुरातन से हूँ. 
मैं जो कुछ भी हूँ वतन से हूँ. 



अभी तक बस अपने लिए जिया हूँ. 
राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहता हूँ. 
देश का सम्मान प्यारा है मुझको, 
मैं तो देश को सर्वोपरि मानता हूँ. 
कोई कैसे कह दे कि सुखन^से हूँ. 
(झूठी बातें बनाने वाले, मक्कार )
बल्कि मैं तो विराट अंजुमन^से हूँ.(सभा, महफ़िल )
मैं जो कुछ भी हूँ वतन से हूँ. 



खड़ा हर सीमा पर जवान रक्षा को. 
हर ग्राम में किसान अन्न-वर्षा को. 
ना कोई कहानी आभाव-भेदभाव की, 
सबके आपसी प्रेम के सदर्शा^ को. (झलक, दृश्य )
जब भी इसका बखान करता हूँ, 
मैं रोक नहीं पाता सहर्षा^ को. (ख़ुशी, उन्माद )
मैं भी रौशन इसी चमन से हूँ. 
मैं जो कुछ भी हूँ वतन से हूँ. 



ये मेरा देश जहाँ में सबसे उदार है. 
सादा लोक-जीवन उच्च विचार है. 
हरपल दुश्मन पर टकटकी लगी है, 
मेरा राष्ट्र हर जंग के लिए तैयार है. 
जितना भी अब तक है मिला मुझे, 
मैं संघर्षी इसी सनन^ से हूँ. (पाना, हासिल करना )
मैं जो कुछ भी हूँ वतन से हूँ. 
मैं जो कुछ भी हूँ वतन से हूँ.


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