लाशों को देख रो रहा शमशान

डॉ बीना सिंह दुर्ग, छत्तीसगढ़।


उसके हाथों मात हर बार इंसान देखो
अपने ही हाथों बर्बादी का अंजाम देखो


चारों सूहे खेल मचा मंजर तबाही का
इंसान बस है चंद दिन का मेहमान देखो


घुटनों के बल आज वह गिड़गिड़ा रहे हैं
जो खुद  को  समझते  थे भगवान  देखो


शहंशाह माना करते थे सारे जहां का
हुए किस तरह हम पर मेहरबान देखो


हंसती खेलती हमारी दुनिया  आबाद थी
लाशों को देख रो रहा आज शमशान देखो


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