हैवानियत की न कोई जाति न धर्म..
पवन मौर्य
कल महाराष्ट्र के पालघर में धार्मिक संत कल्प वृक्ष गिरी और सुशील गिरी की हत्या भीड़ ने पीट पीट कर कर दिया , जो बहुत ही दुखद और निंदनीय है , सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है जिससे सभी अपराधियों पर ठोस कार्यवाही हो ।
लेकिन मुझे सोचने के लिए मजबूर करता है जब तक हमारी मानसिकता यह रहेगी कि माबलांचिंग किसका हुआ है यह देख कर हमारी सोच बनेगी तब तक हमारी नैतिकता शून्य है , मावलांचिंग या अपराध हुआ है तो कारवाही होना चाहिए और ऐसे कृत्य का खुल कर विरोध होना चाहिए लेकिन जब हमारी मानसिकता यह खोजने लगे कि आखिर किसकी हत्या हुआ वह किस जाति , धर्म या विचारधारा के व्यक्ति का हुआ है जब जाति धर्म , संप्रदाय देख कर उसके विरोध को तय करना है तो समझ लो हम भी ऐसे हत्या के मूक समर्थक होते हैं और बढ़ावा के जिम्मेदार होते हैं सुबोध सिंह , अखलाख , पहलू खा , दिलीप सरोज , ब्रजपाल मौर्य , उन्नाव , गुना , रोहित बिमुला , तड़वी , या कन्नौज , झांसी जैसे घटना पर हमारी आप की मानसिकता क्या थी या उस मुद्दों पर आप का विरोध कितना था , आगे ऐसा कृत्य न हो हमने क्या प्रयास किया , या आप की उस समय की घटनाओं पर आप की मानसिकता आहत हुई आप का विरोध भी किया था तो आज की इस घटना पर आप का मन क्यों नहीं आहत हुआ ? जबकि सामान्य रूप से सभी घटनाओं पर व्यक्ति का सामान रूप से विरोध होना चाहिए । क्या वास्तविक रूप से ऐसा होता है ?
हम माब लांचिंग के विरोध में तब भी थे आज भी है , आगे भी रहेंगे , क्यों की भीड़ द्वारा लिया फैसला गलत होता है , ऐसे फैसले दिमाग से नहीं आवेश में लिया जाता है इसलिए किसी भी घटना पर ऐसा कृत्य या सोच कोई न करे कि आप का सोच प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भीड़ के फैसले के समर्थक हो जाए ।
हमे यह देख कर विरोध कभी नहीं करना चाहिए कि हैवानियत किस जाति धर्म या संप्रदाय के साथ हुआ है या किसने किया है , बल्कि विरोध उस हर कृत्य का हो जो गलत हो याद रखो आज हैवानियत उनके साथ हुआ है कल आप के साथ , तथा परसो हमारे साथ होगा। ऐसे दूषित मानसिकता के शिकार सभी होंगे , क्यों कि हम आप भी उसी समाज के हिस्सा है ? जहा ये हैवानियत की विचारधारा पनप रही है । इस लिए हमे गलत को गलत कहने की कोशिश होनी चाहिए , हैवानियत की न कोई जाति होती हैं न धर्म ।