पूर्णत्व..
-मंजुल भारद्वाज
1.
परावलंबन से स्वावलंबन
जन्म से शरीर का पूर्ण विकसन
मस्तिष्क का वैचारिक विकसन
भावाभिव्यक्ति
आत्मिक शांति !
2.
निज का पोषण
निज जरूरतों का निवारण
निज से परिवार
संसारिकता निभाने की योग्यता
उसके लिए समाज में
अपने मन का
बेमन का ‘कुछ’ बनने का
खिताब हासिल करना
समाज के संसार में
खप जाना !
3.
विचार प्रकोष्ट में बैठ जाना
समाज में रहते हुए
अलिप्त रहना
दुनियादारी में रहते हुए
अपने विचार में रम जाना
अपने शोध सूत्रों से
दुनिया को नई राह दिखाना !
4.
राज काज छोड़
परिवार छोड़
खुद की खोज में
रात के अँधेरे में लुप्त हो
आत्म को प्रदीप्त करना
आत्म को दीया बना
आत्म को प्रकाशित करना
बुद्धू से बुद्ध बन जाना !
5,
पंचतत्व को पहचानना
अपने सृजन तत्वों के
गुण धर्म को
कलात्मक आकार देना
स्वयं के ब्रह्मांड में पैठ कर
काल को आकार देना
अपने स्पंदन से सार्वभौमिकता का
वैश्विक भ्रमण करते हुए
अपनी कला से
मनुष्य को इंसान बनाना
जड़ को चैतन्य
चैतन्य की लौ में
विचार,भाव,देह,अध्यात्म को
कला सौन्दर्य बोध से
पल पल जीना
समग्रता और पूर्णत्व को साधना
निजता के शून्य स्पंदन से
ब्रह्मांडीय शून्य को स्पंदित करना
पंचतत्व के शाश्वत
जीवन रूप को
सार्थक करते हुए
विश्व को खूबसूरत बना जाना !