तहज़ीब से रिश्ता निभाना

क्या ठीक है.


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


महबूब को हाल-ए-दिल सुनाना ठीक है. 
अपने दिल की आरज़ू बताना ठीक है. 


वैसे तो उसकी खातिर हाज़िर है जान, 
लेकिन उसे प्यार में, सताना ठीक है. 


राह चलते-चलते आँखे चार हो गयी, 
यूं उसका मुझे देख लज़ाना ठीक है. 


बिन मिले उससे, दिल मेरा लगता नहीं, 
क्यों अंदर ख़्वाहिश को दबाना ठीक है. 


मेरे सामने आकर खामोश हो जाना, 
और मेरे बाद, बातें बनाना ठीक है. 


नज़र को बचाकर रुमाल नीचे गिरा दिया, 
अदा से उनका,  झुककर उठाना ठीक है. 


एहसास का बंधन तुमसे जुड़ गया "उड़ता ", 
तेरा तहज़ीब से रिश्ता निभाना ठीक है.. 





          


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