इस रंगे शरीर पर अब कोई
मेरे कान्हा के रंग में
डॉ इला रंजन
राधा से रूठकर गोपियों ने
उसे उलाहना देते हुए कहा
इतने रंगो से सराबोर किया
फिर कोई भी रंग तुझ पर
क्यों कर नहीं चढ़ रहा राधा
हँसकर राधा ने उनसे कहा
रंगो से रंग कर रंगीन करना
व्यर्थ है तुम्हारा मेरी सहेली
इस रंगे शरीर पर अब कोई
रंग कभी चढ़ ही नहीं सकता
क्योंकि मेरी आत्मा तक रंग
चुकी है मेरे कान्हा के रंग में.!!