होली... रंग प्यार का 

होली... रंग प्यार का 


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


पिया से बोली प्रियतम 
सुनो, आज होली है 
मुझपर भी रंग खुमार का 
प्रेम वशीभूत अबरार का 
ना करना मौका तकरार का 
मेरा लगाव सरोबार का. 


मुझपर अपना चढ़ा दो रंग 
नहीं होता इंतज़ार का. 
एक रंग प्यार का 
एक रंग दुलार का 
एक रंग प्रेमाधार का 
भावनामयी अज़ार  का प्रेम भावना 
एहसासरत गुणागार का बंधन 
मेरे इस धड़कते दिल में 
फैले से सभागार का 


एक रंग चढ़ा दो मुझपर 
उस मुस्कुराते अनार का 
सौन्दर्यमयी मीनार का 
मेरे आँगन में चनार का 
खिलते यौवन कचनार का. 


प्रियतम ने अपनी बाहें खोली 
पेड़ हो ज्यों गुलनार का 
कहने लगा "तुम जीवन हो मेरा 
मेरे प्रेम भरे अम्बार का". 
मेरा प्यार तो निश्छल है, 
ये मोहताज़ नहीं अबरार का. 
तुम्हें देख रूह खिलती है "उड़ता ", 
यही है रंग मेरे प्यार का. 


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