गुजरा जो अतीत...
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
एक सबब.....
गुजरा जो अतीत
जी रहा अब
हुई है सुबह
बदली है शब
कहीं मन शांत है
जो हिलोरता था तब
कुछ उमस तो है
छायेगा मौसम कब
कहीं कुछ छूटा है
वो आया है जब
हालात सभी के अपने
अपना जीने का ढब
टुटा नहीं ज़मीर
है यहाँ हौसलों का हब
तुम लफ्ज़ उकेरते "उड़ता ",
जीने का देते सबब.