दोस्त..

डॉ इला रंजन
इन्द्रधनुष


इस तेज रफ्तार की दुनिया में
कभी-कभी क्यों लगता हमें कि
हम दुनिया से बहुत पीछे हैं
और बिना खास उद्देश्य के जी रहे
जीवन में कुछ कर ही नहीं पाये,
क्यों कभी-कभी लगता मेरा होना
उतना जरूरी नही जितना हम समझते,
क्या खोया हमने,और क्या पाया?
जैसे अनेको सुलझे और अनसुलझे,
सवालों से घिरी खड़ी हूँ! निरुत्तर
पर दोस्ती के रिश्ते ने थामकर मुझे,
मेरे सवालों का जैसे जबाब दे दिया..!!


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