छलकाया था जाम कुछ पल. 

फलसफा गया...


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


एैसे ही निकलता गया, 
ये ज़िन्दगी का फलसफा. 
कुछ मिल गया, 
कुछ छूट गया. 
कोई दोस्त बना, 
कोई रूठ गया. 
सोचा कोई खास बना हमारा. 
रंग लाएगा एहसास हमारा. 
मगर कोई धागा टूट गया. 
कोई मेरी आँखों से दूर गया. 
मैं संभाल ना सका जन्नत अपनी, 
कोई दर से होके मज़बूर गया. 
छलकाया था जाम कुछ पल. 
जाने कैसे काफूर -ए -सुरूर गया. 
था एक बंद अनार, 
हल्की सी चोट से फूट गया. 
ये ज़िन्दगी का फलसफा "उड़ता ", 
क्यों होकर मगरूर गया. 


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