चाहे कितने भी उतार-चढाव आए.
यूं ही हमकदम...
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
हम चले तुम चले दो कदम,
बन गए हमकदम.
अपना मीलों का याराना.
रास्तों में कई पहाड़ आए,
कुछ पेड़, पक्षी और बाग आए.
हम चलते रहे निरंतर,
चाहे कितने भी उतार -चढाव आए.
जीवन में क्या बचा,
यह सवाल नहीं.
हर पल अभी तक कैसे जिया,
ये मिसाल है.
हमें नहीं लगता राहें कठिन थी.
बस चलने का अंदाज़ अलग था.
लोगों ने कुछ ना कुछ बोला,
लेकिन अपने विवेक से काम लिया.
और इसी गुफ़्तगू में,
गुजर गयी आधी ज़िन्दगी.
चलते हमकदम संग सनम,
"उड़ता "अच्छा बीता यह जनम .