तेरी हर नज़्म, ग़ज़ल नहीं बनती:- "उड़ता "

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 


कुछ अधूर है.... 



आज फिर शऱाब पर सरूर है. 
उसे अपने शबाब पर गुरुर है. 


वैसे तो उनकी सूरत सोने नहीं देती, 
लेकिन कोई खुमार,
 ख़्वाब पर जरूर है. 


सुर्ख गुलाब से गाल, 
लरजते से होंठ, 
जोरों से धड़कता दिल, 
क्या वो भी मजबूर है. 


साया मेरी मोहब्बत का, 
कैद है दिल -ए -किताब में. 
जाने क्यों महबूब मेरा, 
मुझसे इतना दूर है. 


तेरी हर नज़्म, ग़ज़ल नहीं बनती "उड़ता ", 
तेरी शायरी कहीं अधपकी
 सी कुछ अधूर है. 





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