फिर... आँखों में रोशनी लौट आयी
मनोज मौर्य
कानपुर। देव कामता कहते है कि उनके चाचा के आँखों का आपरेशन असफल हो गया। आँखों का घाव नहीं भर रहा था और ख़ून निकल रहा था। डाक्टर ने कहा, आँखें बेकार हो गयी है, ये कभी नहीं देख पाँयेगे, उनकी बात पर आप बोल उठे "यदि हमारे बाबा ये बात कह देंगे तो हम आशा छोड़ देंगे" डाक्टर कूछ ग़ुस्से में बोले, हमने आप से सच्ची बात कह दी, यदि कोई इनकी आँखें ठीक कर दे तो हम उसकी टाँगों के नीचे से निकल जायेगे।
डाक्टर के जाने के कूछ देर बाद अचानक ही बाबा का आगमन हूआ। आपने डाक्टर की सब बात बाबा को कह सूनाई। बाबा बोले " इसे कन्धारी अनार का रस पिला, आँख ठीक हो जायेगी।" बाबा की उपस्थिति में ही अनार का रसं उन्हें पिलाना शुरू हो गया। आप के घर में उस समय सुन्दरकांड का पाठ हो रहा था। बाबा पाठ सूनने दुसरे कमरे में चले गये। उस समय लंकापूरी में सीता-हनूमान संवाद तल रहा था। बाबा भवावेश में आने लगे, इसलिये उन्होंने अपना कम्बल सिर से ओढ़ लिया। थोड़ी देर में जब उन्होंने कम्बल उठाया तो उनकी आँखों से रक्त के आँसू निकल रहे थे। इसके तुरंत बाद बाबा चले गये और आपके चाचा की आँखों मे आशातीत सुधार आ गया। जब डाक्टर ने आँखें सही देखी तो वे चकित रह गया और बाबा के दर्शनों की ईच्छा व्यक्त की। पर जब वे बाबा से मिलने गये तो वे रेलगाड़ी से वापस जा रहे थे।
आप स्टेशन पर पहूँचे आप लोगों ने खिड़की से ही बाबा के दर्शन किये। बाबा डाक्टर की सराहना करने लगे , " ये कुशल डाक्टर है , इसने तेरे चाचा की आँखेँ ठीक कर दी और डाक्टर की आँखों में आँसु आ गये। महाराज कभी भी किसी कार्य की सफलता का श्रेय नही लेते थे, सब कूछ स्वंय करके श्रेय दूसरे को दिलवा देते। -जय गुरूदेव, रहस्यदर्शी, श्री नीब करौरी बाबा।