मेहनत की आग में जलता रहा....

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


बस चलता गया....... 


जल -धर वैसा रहा. 
नभ -धर वैसा रहा. 
बस वक़्त बदल गया. 
साज़ -ए -सहर वैसा रहा. 


सोचकर क्या -क्या चला था, 
वक़्त जाने किधर गया. 
ना मुकम्मल नींद हुई, 
ना सफ़र पूरा हुआ. 


ख़्वाब आँखों में बड़े थे. 
लेकिन हालात बहुत कड़े थे. 
फ़िक्र ना की ज़माने की, 
मुश्किलों के रोड़े राह में पड़े थे. 


रात -दिन चलता रहा, 
मेहनत की आग में जलता रहा. 
तमाम उम्र निकल गयी "उड़ता ", 
जज़्बा फिर भी मचलता रहा. 


 


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

..आपने मुन्ना को देखा है?

यूपी सरकार में दवा व्यवसाई भी सुरक्षित नहीं?

हलिया व लालगंज में गरीब, असहाय जरूरतमन्दों को किया गया निशुल्क कम्बल का वितरण