कहाँ से सोहबत आई
कुछ विचार कि लकीरें मस्तक पर आई...
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
कुछ विचार कि लकीरें मस्तक पर आई.
एक मुद्दत बाद तेरी याद -ए -दस्तक आई.
सिर्फ जीने भर से काम चल रहा था,
बिना तेरे कभी ना साँस -ए -रवायत आई.
तू नहीं था तो बंजर हो चला था,
तेरी दुरी से कहाँ जीवन -ए -सोहबत आई.
परेशां हुआ तो भगवान से विश्वास उठा,
गया मंदिर तो वहाँ पत्थर -ए -मूरत आई.
वक़्त नहीं धुंधला तेरे चले जाने से,
मेरी पलकों पर तेरी याद -ए -परत आई.
कैद होकर रह गया अपने आप में,
जो खुद को बरी करा पाता "उड़ता "
एैसी कहाँ आज तलक वकालत आई.