कायाकल्प व संदल फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में बसंत महोत्सव का आयोजन 

सभी रचनाकारों को सम्मानित किया


संतोष कुमार 


 नोयडा | कायाकल्प व संदल फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में बसंत महोत्सव को काव्यगोष्ठी के रूप में आयोजित किया गया। जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर  ईश्वर शरण अस्थाना जी द्वारा रचित "स्वप्न स्वयं आ जाते हैं, अंतर्ध्वनि, गीत अजाने गाता हूँ व दास्तान ए मोहब्बत" का लोकार्पण किया गया। उनके द्वारा रचित गीत और अवधी के दोहे "सगरे जग मा गुनन की, कित्ती बड़ी बजार। मनुआ दोसन छाँड़ि कै, गुन कै करि ब्योपार" ने उपस्थित सुधीजनों को अभिभूत कर दिया।


इस कार्यक्रम कायाकल्प के संयोजक एवं अध्यक्ष डॉ अशोक मधुप एवं संदल फाउंडेशन की अध्यक्षा प्रिया सिन्हा राज ठाकुर व कार्यक्रम अध्यक्षा डॉ प्रमिला भारती, मुख्य अतिथि लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, अति विशिष्ट अतिथि अरुण सागर, ममता किरण व जे सी वर्मा के सुखद सान्निध्य में व डॉ समोद चरौरा के मनमुग्धकारी संचालन में सम्पन्न हुआ।


महोत्सव में दिल्ली एन सी आर के 40 से अधिक कवि व कवियित्रियों ने अपनी जादुई लेखनी और मधुर काव्यपाठ से उत्सव को मोहक वासन्ती सुगंध से ओत-प्रोत कर दिया।



कवि विनय विक्रम सिंह के विरह आधारित दोहे "वासन्ती तन-मन भवा, मनवा भा आषाढ़। ड्यौढ़ी राह निहारती, नैनन काजल काढ़।" व रचना "भृंग व्याकुल हैं सखी, अतिरथी मन हो रहा थिर भुवन निश्चल समीरण, दग्ध अंतस हो रहा।" ख़ूब सराही गयी, कार्यक्रम के खूबसूरत पलों को कवि जगदीश मीणा द्वारा छायांकित किया गया। उनके दोहे "कँचन सी काया लिये, खेली भंवरों संग। उम्र ढले पछता रही, जैसे कटी पतंग।" ने जन मन को वासन्ती सुवास से मोहित कर दिया।


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