गरीब से मुख मोड़ने का...
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
मुक्तक....
वक़्त हो चला,
अपने लफ्ज़ तोलने का.
नसीहतें बुरी है,
ना लेहज़ बोलने का.
पर्दादारी का लिहाफ़,
जरुरत है ओढने का.
ज़माना जैसा रहे,
कर्म आदत छोड़ने का.
झूठी मुस्कुराहटों से,
ना डींग हांकने का.
जो जैसा बता दे,
बस उसे फांकने का.
कुछ ना मिलेगा,
गरीब से मुख मोड़ने का.
खाली हाथ ही रहेंगे,
अमीर से नाता जोड़ने का.
सद्कर्म साथ देंगे,
तमाशा वाह -वाही लूटने का.
नेता पर भरोसा नहीं,
देश की अस्मत टूटने का.
बन मत कवि "उड़ता ",
चले समाज सुधारने का.
लोग जैसे हैं रहेंगे,
कर कोशिश लेखनी सँवारने का.