भ्रम में पड़ी चाल..

क्या हाल


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 


सुबह जब आँख खुले, 
सहर से हुए रूबरू. 
ना चली कोई हवा, 
ना हिले कोई तरु. 


मौसम में उमस रही, 
बेबस पंछी घूमनतरु. 
कैसा सूनापन माहौल में, 
समझ ना आए क्या करुँ. 


मन में रहे कुछ सवाल, 
हल ना हुआ कभी
 ज़िन्दगी -ए -हाल. 
इंतज़ार में गुजर गए, 
जाने कितने साल. 


धुप में तपता बदन, 
सुबह से साँझ हुई, 
गर्मी मचा रही धमाल. 



जगह खड़ा होना मुश्किल, 
भ्रम में पड़ी चाल. 
हाँफते से ह्रदय 
तंग कदम ताल. 


छोड़ो "उड़ता "ये परिस्थितियाँ है 
तेरे कर्म से कटेगा हर काल. 





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