और एक दिन दुनिया से चले जाते हैं.
इश्तहार से...
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
सपने होते हैं इश्तहार की तरह,
जो छप जाते हैं हमारे मस्तिष्क -पटल पर.
जब तक सपने पूरे नहीं होते,
हम उन्हें मस्तिष्क की दिवार पर लेकर घूमते हैं.
बहुत कम लोग होते हैं,
जो इश्तहार को
हक़ीकत में बदल पाते हैं.
हम इश्तहार लेकर जीते हैं
और एक दिन दुनिया से चले जाते हैं.