अब तो हर शाख "उड़ता ", नया तरु बना
पुराना बंधन...
✍️ सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
कुछ देर तलक हम खड़े रहे
मैं और वो
शायद दोनों ही सोच रहे थे
आज इतने सालों बाद
कैसे हम मिले सरे -राह
किसी चलचित्र की तरह
जिसमें बहुत कुछ अनकहा
मगर यादों का पुलिंदा
वक़्त का बनाया फासला
एक पुराना बंधन
जो कभी टूट चुका है
मगर अब कुछ नहीं शेष
रास्ते अलग हो चुके हैं
अब तो हर शाख "उड़ता ",
नया तरु बना चुकी है.