तेरे क़दमों की मिट्टी चूम रहा

घूम रहा हूँ.



सुरेन्द्र सैनी


तेरी यादों संग झूम रहा हूँ. 
तेरे वादों पर घूम रहा हूँ. 


जीने की आरज़ू प्रबल मेरी, 
बिना तेरे ज़िन्दगी मरहूम रहा हूँ. 


जहाँ -जहाँ से निकले तुम हो कर, 
तेरे क़दमों की मिट्टी चूम रहा हूँ. 


तन्हाई की आदत ना रही मुझे, 
आती हुई भीड़ में हुज़ूम रहा हूँ. 


मेरी चाहत भी शोषण कर रही, 
जैसे "उड़ता " उम्रभर मज़लूम  रहा हूँ. 


 


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