...तेरा हुस्न आफताब है 

तुमसे तो तारीफ भी नहीं होती "उड़ता "


सुरेन्द्र सैनी


तेरी सूरत हुस्न -ऐ -आफताब  है 
जैसे  किताब में बंद  इक गुलाब है 


तेरे आगे बेरंग हुए रंग सारे 
लाखों में एक तेरा शबाब है 


तुम अच्छे लगे तभी दीदार करता हूँ 
जाने किस बात पर तुम पर इताब है 


वैसे  तो दिल्लगी में कटी ज़िन्दगी 
मगर झूठ नहीं तू जैसे शराब है 


कभी कहीं इश्क़ का खुदा नहीं होता 
बस तू मेरे प्यार का एक नवाब है 


तुमसे तो तारीफ भी नहीं होती "उड़ता "
उनकी खूबसूरती का कहाँ जवाब है. 


 


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