तमाम उम्र तुम्हें पाकर सुकून से रहने के लिए...

सुरेन्द्र सैनी "उड़ता "


चलो कुछ 


कभी -कभी 
मैं समझ नहीं पाता 
तुम्हें और तुम्हारे स्वभाव को
कभी हो जाते हो 
खरगोश से नर्म 
तो कभी पत्थर से सख्त 
लेकिन एक बात 
जो हमेशा रहती है 
वो ये की तुम्हें परवाह है 
मेरी और मेरे विश्वास की 
और यही काफ़ी है 
मेरे लिए 
तमाम उम्र तुम्हें पाकर 
सुकून से रहने के लिए 


चलो कुछ है 
शायद यह भी नियति है


 


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