नसीब 

किसी थाली में दाल रोटी मयस्सर नहीं


डॉ बीना सिंह


नसीब जुदा-जुदा सबके बनाए हैं उसने
फूल किसी को कांटों से सजाए हैं उसने 


किसी थाली में दाल रोटी मयस्सर नहीं
किसी को छप्पन भोग वरसाए हैं उसने


यह माना कि मुख्तलिफ होते हैं इंसान
हर किसी को नेक रास्ते दिखाएं हैं उसने


मुकम्मल बगिया में फूल पौधे नहीं उगते
चट्टान बंजर में भी फूल खिलाए हैं उसने


आंधियों में  उम्मीदें चिराग कैसे बुझे बीना
मेरा मुकद्दर खुद हाथों से सजाए हैं उसने


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