मुझसे मेरा साक्षात्कार

 मंजुल भारद्वाज 


उगता, मुस्कुराता, चमकता 
तपता, तपाता, आग उगलता 
लाल, पीला, सुनहरा सूर्य
 
सब रूप देखें हैं मैंने सूर्य के  
जीवन के हर रूप मुझसे 
मुझको मिलाता है 
जीवन की हर परिस्थति . 
हर हालात से रूबरू कराता है, यह सूर्य !


यह सूर्य 
अडिग, स्थिर, स्थाई तपस्वी सा 
अपनी साधना में समाधिस्त 
अपने को जलाकर, आत्म शुद्दिकरण के
हवन मंडप में आत्म आहुति देता हुआ
जलाता है हर पल दुनिया का अहम 
भस्म करता है निरंतर बढ़ते अहंकार को, यह सूर्य!


यह सूर्य ना उगता है, ना ही अस्त होता है 
यह निरंतर बस जलता है 
इसका उगना और अस्त होना 
वसुंधरा की रूमानी कलाओं का 
मानवीय काव्यात्मक सम्बोधन है 
जीवन की धुप छाँव है,
उसके दिन रात हैं 
जीवन तारों की बारात है, यह सूर्य !


यह सूर्य, मात्र एक अनोखा 
खगोलीय पिंड नहीं है 
यह प्रथ्वी का प्रकाश है 
जीवन का स्त्रोत है 
यह सूर्य कोई और नहीं 
मुझसे मेरा साक्षात्कार है !


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