मोहन की पीर का रस करुण
अक्रूर का गोकुल में प्रवेश
आरजू राय भट्ट
हे दाऊ आज कालिंदी भी
क्युं थके पथिक सी चाल में हैं,
बाबा बेसुध क्युं पड़े यहाँ
प्यारी मईया किस हाल में हैं।
क्युं रुठी हैं मईया हमसे
क्या पीड़ा है लाचारी है,
कुछ तो बतलाओ भ्रात मुझे
क्युं मुर्छा में माँ प्यारी है।
सुन कान्हा की बातें इतनी
दाऊ भावुक होकर बोले,
जो जीवन भर थे हँसे सदा
वो अग्रज आज रोकर बोले।
मोहन मईया के प्राण आज
यमदूत कोई हरने आया,
जिस ब्रज का तू रक्षक था
उसको अनाथ करने आया।
सुन दाऊ की बातें इतनी
मोहन अधीर हो कर बोले,
स्पष्ट कहो हे भ्रात जरा
मोहन सनीर होकर बोले ।
है कौन दुष्ट जो पीड़ा दे
दाऊ कान्हा की जननी को,
खल हीन करूँगा भ्रात अभी
अंबर पाताल इस अवनि को ।
दाऊ बोले सुन गोपाला
मथुरा से अक्रूर आया,
पर सच तो ये है बनवारी
इस बार वकासुर आया।
सुन दाऊ की बातें इतना
मोहन यशुदा से लिपट गए,
मैं तुमसे दूर न जाऊंगा
कह माँ की गोदी में सिमट गए।
कह दो इस बैरी को माते
न लल्ला तेरा जाएगा,
जिसको है तेरी ममता मिली
इससे बढ़कर क्या पाएगा।
मुझको मथुरा न जाना है
जो होता है सो होने दे,
लोरी तू मुझे सुना मईया
अपनी गोदी में सोने दे।