माँगने से कहाँ कुछ मिलता है "उड़ता "
मुझे सरोबार कर दो
सुरेन्द्र सैनी
मेरे दिल को कोहिनूर सा चमकदार कर दे
तेरे इश्क़ से मुझे सरोबार कर दे
सागर में चला रहा हूँ कश्ती अनवरत
मुझे एहसास के दरिया में पार कर दे
कोई बहाना ही नहीं उनके दीदार का
या खुदा एक बार उन्हें बीमार कर दे
कहीं निगाहों में ना भरले कोई उन्हें
तारों से कहो चाँद को ख़बरदार कर दे
वैसे तो कौन जानता है ज़माने में मुझे
हामी भर मुझे शहर का अख़बार कर दे
यहाँ घुटन सी है तन्हाई के कमरे में
एक बार बारिश सी बरस हवा दार कर दे
कुछ पल ही सही मुझे वक़्त दे दे
जैसे कुछ देर का ज़मीनदार कर दे
नेक इरादे से भी प्यार में पड़ गया
मुझे कोई सज़ा देकर गुनहगार कर दे
माँगने से कहाँ कुछ मिलता है "उड़ता "
मांगता हूँ मोहब्बत मुझे तलबगार कर दे.