खुद से भागना मुश्किल

तू रहा.... उड़ता 


सुरेन्द्र सैनी


एक सवाल अक्सर रहा. 
वही इलज़ाम सरासर रहा. 


जाने कौन सा रण है, 
मेरे आसपास बक्सर रहा. 


खुद से भागना मुश्किल था, 
तेरी यादों में बसर रहा. 


कहीं लापता सा हो गया, 
नहीं दोस्तों का ख़बर रहा. 


टुटा मगर बिखरा नहीं, 
तेरी सोहबत का असर रहा. 


क्या देखता तुझे देखकर "उड़ता "
तमाम उम्र तू मेरा नज़र रहा. 





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