गुजरे दौर में लड़कपन का समर गया...
वक़्त किधर गया...
सुरेन्द्र सैनी
कहाँ बचपन के सपनों का भँवर गया.
वो प्यारा सा वक़्त जाने किधर गया.
दौड़ने लग पड़े ज़माने की दौड़ में,
सोचकर कि चलो मुकद्दर संवर गया.
बड़े तो हो गए इस दुनियादारी में,
अपने अंदर का बच्चा जैसे मर गया.
याद आते हैं दोस्त, खिलखिलाना -हँसना,
बीते लम्हों का नहीं कभी असर गया.
वो वक़्त याद कर फुर्तीला हो उठता हूँ,
मत सोचना मुझे आंक कमतर गया.
अब तो बस ज़िन्दगी घसीट रहा "उड़ता ",
गुजरे दौर में लड़कपन का समर गया.