सत्ता की बिसात पर...

-मंजुल भारद्वाज 


फ़िज़ा में घुली नफ़रत को 


मेरे शब्द मुहब्बत से भर देंगे 


हर भारतीय के जज़्बे पर 


इंकलाब लिख देंगे 


अमन-ओ-चैन के दुश्मनों 


ये जान लो 


सत्ता की बिसात पर 


इंकलाब लिख देंगे 


बड़ी गहरी हैं जड़े 


जिसे हम हिंदुस्तान कहते हैं 


हमारी परवाज़ पर 


पाबंदी के मनसूबखोर 


हम परों पर इंकलाब लिख लेंगे  


हाँ कवि हूँ 


शब्दों से चेतना जगाता हूँ 


मेरे शब्द दिल बहलाव 


या लफ़्फ़ाज़ी का सबब नहीं 


राष्ट्रप्रेम की भावनाओं को 


विचार और दृष्टि दे 


हर देशवासी के दिलो दिमाग में


संविधान लिख देंगे 


मेरे शब्द 


क्रांति शब्दबद्ध करते हैं 


पढ़ लोगे तो  


तुम्हारे गुमान पर 


इंकलाब लिख देंगे!


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