जिजीविषा के पथ पर
मंजुल भारद्वाज
बादलों से बरसती रूमानियत
खण्डहरनुमा घरों को
दस्तावेज बना देती है
जिसमें उभरते हैं
जन्म और मृत्यु के
प्रस्थान और गन्तव्य बिंदु
जवान अरमानों
सर्द रातों की हरारत
भीगी लकड़ियों से
सिसकते ख़्वाब
इस सबके बावजूद
जीवन को रोशन करता हुआ
जिजीविषा के पथ पर
रूमानियत में भीगता
चलता पथिक !