हमें अधर्म से दूर रखना ही सबसे बड़ा अदृश्य फल है -धर्माचरण
हम कभी कभी अधर्म को भी धर्म समझ लेते है...
धार्मिक व धर्म की मान्यताओ पर जीवन यापन करने वाला व्यक्ति प्रत्येक अधर्म से बच जाता है...
सरिता सिंह
आज कल हम अनजाने में भी धार्मिक बन कई तरह के अधर्म कर लेते है। हम कभी कभी अधर्म को भी धर्म समझ लेते है। पर धार्मिक व धर्म की मान्यताओ पर जीवन यापन करने वाला व्यक्ति प्रत्येक अधर्म से बच जाता है। सबसे उत्तम महाराज जी ने इस कलियुग रूपी अधर्म समर में एक मंत्र दिया है जो प्रत्येक अधर्म से दूर कर विवेकी बनाये गा love all serve all feed किसी के जरिये से नही स्वयं अपने हाँथों से यही सीधा रास्ता है, धर्म की कोई भी क्रिया विफल नहीं होती। धर्म का कोई अनुष्ठान व्यर्थ नहीं जाता। किसी न किसी रूप में हमें फल मिलता ही रहता है। कभी हम अनुभव कर लेते हैं, कभी हमें आभास भी नहीं होता। जब हम धर्माचरण करते हैं तो कठिनाइयां भी सामने आती हैं, किंतु ये कठिनाइयां हमारे ज्ञान और समझ को बढ़ाती हैं।
धर्ममय आचरण करने पर धर्म का स्वरूप हमें समझ में आने लगता है। तब हम अपने कर्मों को ध्यान से देखते हैं और अधर्म से बचते हैं। हमें अधर्म से दूर रखना ही सबसे बड़ा अदृश्य फल है धर्माचरण का। महाभारत के शांतिपर्व में कहा गया है कि धर्म अदृश्य फल देने वाला होता है। जब हम धर्ममय आचरण करते हैं तो चाहे हमें उसका फल तत्काल दिखाई नहीं दे, किंतु समय आने पर उसका प्रभाव सामने आता है।